पाषाण कथा | Pashan Katha

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Pashan Katha by राजवली पाण्डेय - Rajvali Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाषाण-कधा पे - समय का मुझे अनुमान नहीं है इसलिये जन्मकाल के पश्चात्‌ कितना समय बीत चुका यदद मे नहीं कद सकता । जहदों तक स्मृति जाती है वहीं से आारभ करता हूँ । बचपन की इतनीन्सी बात याद है कि समुद्र की प्रश्नस्त वेला में मैं अपने भाई-बंधुभो के साथ क्रीडा करता हुआ विचरण करता था; वायुवेग के कारण उड़ जाया करता था; चास्थाचक्र में पड़कर इधर से उधर छढक्ा करता था, कभी समुद्र के जछ में गिर पढ़ता और जल के हट जाने पर, धरती सूख जाने पर, पुनः लौट गाया करता था-] उस महासमुद्र की विशाछता का अनुमान साप लोग ठीक ठीक नहीं कर सकते ।. उसके रेतीले मैदान का विस्तार आप लोगो के समस्त मद्दादेशों से भी अधिक प्रद्यस्त था | नो जखजतु उस मद्दासमुद्र में रहा करते थे उन्हें यौवन की मूर्छा छूने




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