ग्राम्य अर्थशास्त्र | Gram Arthshastra
लेखक :
पं दयाशंकर दुबे - Pt. Dyashankar Dube,
शंकर सहाय सक्सेना -Shankar Sahay Saxena,
श्री महेशचंद्र - Shri Maheshchandra
शंकर सहाय सक्सेना -Shankar Sahay Saxena,
श्री महेशचंद्र - Shri Maheshchandra
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
352
श्रेणी :
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पं दयाशंकर दुबे - Pt. Dyashankar Dube
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शंकर सहाय सक्सेना -Shankar Sahay Saxena
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श्री महेशचंद्र - Shri Maheshchandra
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हू...
कतार (पत्णा5) को पूरा कर लेता दे श्रोर यदि वह योड़ा ही प्रयत्न करता
है तो उसकी कम श्रावश्वकताएँ ही पूरी हो सकेंगी । दूषरे शब्दों में पदला
श्रादमी श्रमीर होगा आर दूसरा गरीब । यही दशा एक देश की होती है|
श्रगर किसी देश के लोग दविक प्रयत्न करके प्रकृति से बहुत सी वत्तुएं: प्रात
नहीं करते तो चह देश निधन रहेगा । श्रर्थरास्त्र में मनुष्य के इन प्रयलों का
ही श्रष्ययन रिया जाता है । इसलिये श्रर्थगाल्न के श्रव्ययन से हमें यह भी
मालूम दो सकता है कि दम निर्धन क्यो हैं श्रौर दिस प्रकार बनी बन सकते हैं ।
“सक्तेप से हम कह सकते हैं कि अथेशास्र वह शाख्र दे जिसमें
हम सनुष्य के अपने भरण पोपण के लिये किये गये प्रयत्नों का
दुध्ययन करते हैं | '
उदाहरण के लिये विद्यार्थियों में से ऐसे बहुत से होंगे कि जिनके पिताजी
नौकरी करके, चफालत या डाक्टरी से धन उत्पन्न करते हैं । क्या कमी तुमने
यह भी सोत्रा है कि तुम्दारे परिताजा इन पेसां का केसे पैदा करते है श्रोर इनको
केसे खर्च करना चादिये कया यद श्रच्छा दोगा ऊि तुम्हारि पिताला तनस्वाह
पाति दी सच यपर्वा को खर्च कर दें * नहीं, क्योंकि ऐसठा करने से महीने भर का
खर्च केसे चलगा ! क्या त॒म्दारे पिताजी समर रुपयों का मुक्त में ही वाट देते हैं।
क्या वे रपये के बदले में कुछ नहीं लेतें ? जय तुम मडी मैं द्नाज खरीदने जाते
हो तो रुपये के बदले मैं गेहूँ, चना, मटर, चावच आदि चीजें खरीदते हो । तुम
लोगों में से बहु से गाँवों के रहने वाले हैं | वहाँ किसान खेती करके ग्रनाज
की उत्पत्ति करतें हे । जब फसल कटऊर खलिदान में श्रा जाती है तो उपज
का थोड़ा सा हिस्सा तो खाने के लिये घर मे रख लिया जाता दे श्रौर एक
बहुत बढ़ा हिस्सा व्यापारी के हाथ बेच दिया जाता है, लेकिन एक वात श्रौर
है। इन सबके पहले खलिद्दन पर--नाऊ, धोवी, मालगुजार, मददाजन श्रादि
का घावा दोता है । शद्दर की तरह गाँवा में नाऊ, धांत्री, बढ़ई वगैरह को नकद
बैसा नहीं मिलता । घर पीछे उनका हिस्सा बरंधा रहता है । फसल कट जाने पर
श्रनाज में से पहले उनका हिस्ठा निकाल देना पढ़ता है । महाजन जिनसे
किसान रुपया उधार लेते हैं, सूद की जगद श्रनान ही लेते हैं |
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