बापू की छाया में | Bapu Ki Chhaya Mein

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्५ नाध्यात्मिक मुन्नतिकी साधना करके जीवनकों समृद्ध वनाओू । जिसी दिगामें वटनेका मेगा प्रयत्त चल रहा हैं। जिस तरह वापूजीकी भाषामे सेरी नयी तालीमकी पाठगाला माके नही बल्कि दादी और नानीके गर्भसे आरंभ होकर आजतक अुसी प्रकार चल रही हैं। थिसी पूजीके बल पर में यापु जैसे महापुरुष तक पहुंच सका लौर अुनका झपापान वन सका । तुलपीदासजीने कितना सुन्दर कहा हैं प्रभु त्तर्तर कपि टार पर ते किये आप समान | तुलसी कहू ने राम मे नाहिव बोल निधान ॥। जिन चचनोका मेने अपने जीवनमें प्रत्यक्ष अनुभव किया है। सत्सयकी महिमा सुन्दरदासजीने बडे सुन्दर घव्दोमें वतामी है मातु मिले पुनि तात मिले सुत श्रात मिले युवती सुयदायी, राज मिड़े गजवाज मिले नव साज मिले मन वाछित पाओ । छोर मिठे सुर जोक मिले विधि छोफ मिले वेठुण्ठ अजाबी, सुन्दर और मिले सवही सुभ सत समागस दुलेग भाओ । मैसा दुडभ सत-समागिम मुझे वाजूजीके चरणोंमे बैठ कर सहज ही प्राप्त हुब 1 गव जिससे थधिक लौर में भगवानसे कया चाहू ? चलवन्तसिंह




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