भारतीय इतिहास की रूपरेखा जिल्द १ | Bhartiya Itihas Ki Rooprekha 1

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Bhartiya Itihas Ki Rooprekha 1 by जयचंद्र विद्यालंकार - Jaychandra Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रे ) उस के इ०० सेनिकों को घेरे रखने के बावजूद अपनी पहली राजधानी को वापिस न॒ ले सका था । प्राचीन भारत के समूचे इतिहास का सार ओर तख कैम्ज्िज इतिहास के विद्वान सस्पादक की दृष्टि में सानो पाटलि- पुत्र पर दिमेत्र का वह घावा ही था ! वे अपनी गरेबान में मुंह डाल कर देखें और सोचें कि उन्हें उस एशिया-निवासी का लिखा हुआ युरोप का इतिहास केसा लगेगा जो उस इतिहास के ऊपर हलाकू खां मगोल का चित्र छापे, और उस के दर्पण में वे अपने इतिहास का स्वरूप देख लें !) उक्त दो इृष्टान्तों को देख कर हमें यह हर्गिज़ू न मान बेठना चाहिए कि सभी पाश्चात्य विद्वानों की दृष्टि इसी प्रकार पक्तपात से दूषित है | उन में से श्रनेक की दृष्टि शुद्ध वैज्ञानिक है, घर भारतीय इतिहास के अध्ययन ओर खोज में उन्होंने जो निः्स्वार्थ एकाय्र तत्परता दिखलाई है वह दमारी श्रद्धा की पात्र दें। किन्तु अपने देश के इतिहास की फ़िक्र हसे उन से झधिक होनी चाहिए; और इस में सन्देह नहीं कि झपने इतिहास की समस्याओं को हम उन से कहीं ्रच्छी तरद समक और सुन्नका सकते है, यदि हम उन की श्रोर ध्यान दें । और भारतवर्ष का _ इतिहास सच कहें तो भारतीय भाषाओं में हो ढीक डीक लिखा जा भाषाओं से ठीक प्रकट हो नहीं हो पातीं * (वो भी दुर्भाग्य से झभी तक तो भी दुभाग्य से झभी तक अपने इतिहास की ओर हमारा बहुत कर ध्यान गया है । पिघुले बीस-तीस बरस से बहुत से भारतीय विद्वान अपने इतिहास के पुनरुद्वार 'में जुट गये है; ' तो मी उन की िकां इतिहास के पुनरूदार गये है; ' तो मी उन की झधिकांश कृतियाँ अंग्रेजी में निकलती है, जिस से दमारे देश की जनता को घिशेष १डा० राघाकुमुद मुखर्जी ने यह कठिनाई अनुभव की है । दे० उन की लोकल गदर्न्मेंटट इन ऐन्शयेंट इडिया ( प्राचीन भारत में स्थानीय शातन ); औक्सफ़ड, १९१९, प्रस्तावना पु० १४ |




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