प्रधानमंत्री | Pradhanmantri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
304
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रल्लाह का फ़ज़ल
झ्राज भी है, मगर उतना रूढ़ नहीं ) । इस रस्म के पीछे खर्य[ल:
यह था कि नेहर में, जहां वह छोटे से बड़ी हुई, उसे श्रघिक
श्राराम मिलेगा श्र उतना संकोच भी नहीं होगा जितना
ससुराल में, सास-ननद श्रौर जेठानी-देवरानी के बीच, जिन्हें
वह द्यादी के बाद से ही जानने लगी होती है । मगर पिताजी
का झ्राग्रह था कि हमारी लाड़ली बहू की पहलौठी हमारे घर
परही हो । हम खुद सारे इन्तजाम की देखभाल कर सकेंगे
ग्रौर मुल्क के बेहतरीन डाक्टर श्रौर नसें श्रौर नई-से-नई
चिकित्सा-सुविधाएं मुहैय्या की जा सकेंगी । -इसलिए कमला
ग्रानन्द भवन में ही रहीं ।
काफी देर के बाद, मुभे लगा, जेसे बरसों बीत गए हों ।
डाक्टर लोग बाहर भ्राये । आंगन के पार भागती हुई मैं वहां
ठीक समय पर पहुंच गई थी, क्योंकि प्रसव करानेवाला
स्काटिश डाक्टर भाई से कह रहा था, ““श्रीमानूजी, इतनी-सी
मुनिया बेटी है ।”'
सुनते ही श्रम्मां के मुंह से निकला, “्ररे, होना तो लड़का
चाहिए था ! ” वह चाहती थीं कि उनके इकलौते लाल के घर
लड़का हो । अझ्रम्मां की बात सुनते ही पास-पड़ोस में खड़ी
सहिलाग्ों के चेहरे लटक गए । अम्मां का इस तरह जी छोटा
करना पिताजी को जरा भी न सुहाया । वह भुंफला उठे और
लगे भशिड़कने, “'खबरदार, ऐसी बात मृंह से निकाली तो ! कभी
ऐसा खयाल भी मन में नहीं लाना चाहिए । वया हमने कभी
भ्रपने बेटे श्रौर बेटियों में कोई फर्क किया है ? कया तुम सभी-
से एक-जेसी मुहब्बत नहीं करतीं ? देखना तो सही, जवाहर
की यह बेटी हजारों बेटों से सवाई होगी ।” वह मारे गुस्से
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