प्रधानमंत्री | Pradhanmantri

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Pradhanmantri by रजा हठीसिंह - Rajahathi Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रल्लाह का फ़ज़ल झ्राज भी है, मगर उतना रूढ़ नहीं ) । इस रस्म के पीछे खर्य[ल: यह था कि नेहर में, जहां वह छोटे से बड़ी हुई, उसे श्रघिक श्राराम मिलेगा श्र उतना संकोच भी नहीं होगा जितना ससुराल में, सास-ननद श्रौर जेठानी-देवरानी के बीच, जिन्हें वह द्यादी के बाद से ही जानने लगी होती है । मगर पिताजी का झ्राग्रह था कि हमारी लाड़ली बहू की पहलौठी हमारे घर परही हो । हम खुद सारे इन्तजाम की देखभाल कर सकेंगे ग्रौर मुल्क के बेहतरीन डाक्टर श्रौर नसें श्रौर नई-से-नई चिकित्सा-सुविधाएं मुहैय्या की जा सकेंगी । -इसलिए कमला ग्रानन्द भवन में ही रहीं । काफी देर के बाद, मुभे लगा, जेसे बरसों बीत गए हों । डाक्टर लोग बाहर भ्राये । आंगन के पार भागती हुई मैं वहां ठीक समय पर पहुंच गई थी, क्योंकि प्रसव करानेवाला स्काटिश डाक्टर भाई से कह रहा था, ““श्रीमानूजी, इतनी-सी मुनिया बेटी है ।”' सुनते ही श्रम्मां के मुंह से निकला, “्ररे, होना तो लड़का चाहिए था ! ” वह चाहती थीं कि उनके इकलौते लाल के घर लड़का हो । अझ्रम्मां की बात सुनते ही पास-पड़ोस में खड़ी सहिलाग्ों के चेहरे लटक गए । अम्मां का इस तरह जी छोटा करना पिताजी को जरा भी न सुहाया । वह भुंफला उठे और लगे भशिड़कने, “'खबरदार, ऐसी बात मृंह से निकाली तो ! कभी ऐसा खयाल भी मन में नहीं लाना चाहिए । वया हमने कभी भ्रपने बेटे श्रौर बेटियों में कोई फर्क किया है ? कया तुम सभी- से एक-जेसी मुहब्बत नहीं करतीं ? देखना तो सही, जवाहर की यह बेटी हजारों बेटों से सवाई होगी ।” वह मारे गुस्से




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