डिंगल गीत | Dingal Geet

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Dingal Geet by रावत सारस्वत - Ravat Sarasvat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. है. अभी तक ढडिगठ को अपेक्षाकृत नया शब्द मानने वाले इसका ख्वेप्रथस प्रयोग उन्तीसवीं सदी मे वांकीदास के काव्य में ही ढूंढ पाये थे । पर जैन कवि छुसछलाभ के छद शास्त्र 'उ्डिंगठ नाम माठा' तथा सायांजी झूला के 'लागदसण' मे इस शब्द का प्रयोम देख कर इसका प्रचलन पतरद्बीं सदी के प्रारम्भ में भी स्वीकार करना पढ़ता है। बहुत सम्भ है झागे चलकर इसकी प्राचीनता आर पद्िले तक प्रमाणित की जा सक । दूसरी बात ध्यान देने की यद्द है कि सायांजी के 'तागदमण' में जि | ग से यह प्रयुक्त हुआ है: उससे पिंगठ 'और टिंगछ की -प्रतिस्पघां भी स्पष्टतया लक्षित होती है । कालियनाग शोर कृष्ण के युद्ध का चित्र प्रस्तुत करते हुए सायांजी ने लिखा है :-- गोडी दांग मारा गुड़े गु'ठणारा पड़े पाइ पारा मथे मेंण धारा उड़े पींगठा डींगढा रा श्गारा प्रहै गूदरे जेम कुल्लां भारा 'पिंगठ का सम्बन्ध कृष्ण द्वारा वश में किये जा रहे नागराज से जोड़ने के कारण यहां भी चारण कवि ने डिंगव की तुलना में पिंगठछ को देय ही सिद्ध किया है । कोन कद्द सकता है कि पिंगछ श्र डिंगठ की इसी प्रतिस्पर्धा ने पिंगंठ के छद शास्त्र की चुलना मे 'झपना नया छंद-विधान ाविष्कृत करने की प्रेरणा चारण कंबियों को दी हो । हाल ही में हुई कुछ खोंजों ' के अनुसार डिंगठ छंद शास्त्रों के कई लेखकों ने इस शास्त्र के प्राचीन आचार्यों सें भट्ट जाति के विद्वोरनों का नामोल्लेख किया है. जिससे चारणों को'इस शास्त्र के छाविष्क्तो मानना संदिग्ध नहदीं रद्द गया है । यद्यपि चोरण कवियों ने पिगल भाषा की भांति परम्परागत पिंगतठ छन्दों में भी नेक डिगठ् रचनायें की है, पर अधिकाश साहित्य डिंगढ के नये छ्दों मे दी रचा गया है । डिंगठ का यद्द मौलिक छद शास्त्र, उसके लिए एक मद्दान गौरव का विषय बन गया है |




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