भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक रेखाएं | Bhartiya Sahitya Ki Sanskritik Rekhaye

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Bhartiya Sahitya Ki Sanskritik Rekhaye by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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) न करियों की रचनाओं में जहाँ हु ० पा रे पडा वहाँ गौड़ीय रचनाएँ इतै से अछेली, रह गईं | बंगला सहित्य में पीछे रामप्रसाद जैसे शाक्त कवि यो री भी भ्तिपूर रचनाएँ सम्ह हुई जिनमें मधुर रस की जगह वात्सर्ल्य हैच्युघिक था । . मर चैतन्य देव ने श्रपने अंतिम दिन उड़ीसा प्रात की पुरी में व्यतीत किये थे श्र वहीं उनका देहांत भी हुभ्रा था जिस कारण वहाँ के उड़िया भाषा भापियों पर भी वंगाल के गौढ़ीय संप्रदाय का प्रभाव बिना पढ़े नहीं रह सका | उनके वहाँ श्राने के समय तक जिस वैष्णव भक्ति का प्रचार था श्रौर जिसके द्वारा अनुप्राणित होकर उड़िया कवि श्रपने पदों की रचना कर रहे थे वह श्रधिकतर बौद्धघर्म से प्रभावित थी । इन वैष्णव कवियों के इष्टदेव कृष्ण “लेख एवं “शून्य पुरुष! थे श्र इनको राधा भी जीवात्मा से श्रभिन्न थी जिस कारण इनकी भक्ति जधिना बहुत कुछ योगपरक रूप घारण कर लेती थी । इसमें उस शुण- गान एवं लीला कीर्तन का समावेश नहीं था जो गौड़ीय भक्तों की विशे- पता है। उड़िया वैष्णव कवि अच्युतानंददास, जगन्नाथदास तथा बल- समदास श्दि ने अपनी रचनाओं में इसी कारण गेयत्व की ओर अधिक ध्यान नद्दी दिया है श्रौर उनके 'शूत्य संहिता” श्रौर 'विराटू गीता” लैसे अ्रथों की पक्तियों में शुष्क वर्खनात्मक शैली के ही झधिक उदादरण पाये जाते हैं । मराठी के वारकरी कवि श्रपनी रचनाश्रों में अधिक दार्शनिकता और पौराणिकता के श्रा जाने पर उन्हें सरस एवं रृदयगाही बना लेते थे। दिंदी के संत कवियो से से भी कई एक श्रपने ऐसे पदों को दक्ष बनाने में सफल कहे जा सकते हैं कि उड़िया के 'पंचसखा” वैसे नहीं जान पड़ते | इनकी वे हो रचनाएँ शधिक सुंदर हैं जिनमें या तो इन्होंने आपने निजी उद्गार प्रकट किये ३ अथवा जिन पर गौड़ीय वैष्णव भक्ति का भी स्पष्ट प्रभाव पड़ा है । रिंदी भापा के संत कवियों पर कुछ न कुछ मदराष्ट्र के वारकरी संतों का भी प्रभाव लक्षित होता है । इनमें से सर्वप्रथम कवि कबीर के




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