श्रीमद् जवाहराचार्य समाज | Shrimadh Jawaharacharya Samaj

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Shrimadh Jawaharacharya Samaj by ओंकार पारीक - Omkar Parik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन गुखी है तो सिज्ञान सुखी है, साहित्य समृद्ध श्रौर सरफूति सम्पन्न है । मानव को कु'ठित कर सम्यता फलफुल नहीं सबती । भाचायें श्रीमद्‌ जवाहराचाये के साहित्य का सत्देश , हैं) एक कथन में-- “लोग श्रपनी-प्रपनी जातियों के सुधार के लिए क़ानून बनाते हैं, जातीय सभाग्रो मे प्रस्ताव पास करते हैं, लेकिन टृदय मे जव तक हराम श्वाराम से बैठा है तब तक उनसे क्या होना जाना है............लोगो के दिल से हराम नही गया है । उसके निकले बिना व्यक्तियों का सुधार नहीं हो सकता, श्रौर प्यक्तियों के सुधार के भ्रभाव में समाज सुधार का भ्रथे ही पया है ?” याद होगा पाठकों को पढ़ित नेहरू का कथन-- 'माराम हराम है!” यह सही है कि श्राज भी हराम हमारे दिल से निकला नहीं है । यह निकले तो समाजवाद झाये । पोटे में, धाचाय॑ श्री का यही मूल समाज दर्शन है। 'घीमद जवाहराचायं समाज' कृति की झ्तरात्मा मे--- हंसने भाचायें श्री जवाहर की युगवाणी का सारसत्त्व श्रौर लोग-मूल्य-प्रकन कहा तक मेरी लेखनी से हुम्ना है--इसके परीक्षर हूँ पाठ भौर साघक । भाषायं थ्री के प्रवचन साहित्य के परिष्श्य मे कल २.




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