स्वामी केशवानन्द अभिनन्दन ग्रन्थ | Sawami Keshawanand Abhinandan Garnth

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Sawami Keshawanand Abhinandan Garnth by बनारसी दास चतुर्वेदी - Banarasi Das Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घ दे ] (४) श्र मेरा नमस्कार है तुम्हे, हमारे रक्त से उत्पन्न महिलाश्रो को--उन स्त्रियो को, जो झअपने पुरुपो के साथ उस झग्निमय समय मे डटी खडी रही श्रौर जिन्होंने श्रपने-श्रापको इसलिए विल्कूल सयत रवखा कि कही हमारी किसी भावुकता के कारण पुरुपो की मर्दानगी मे कोई कमी न श्रा जाय । अत्यन्त निराशामय परिस्थिति का भी तुम बहादुरी से सुकाविला करती रही श्रौर गोली की वौछार में भी मुस्कराती रही । काल-कोठरी मे वन्द कान्सटेन्स ! सेरा नमस्कार तुम्हारे लिए है । (५) उन पुरुषों तक भी मेरे नमस्कार पहुँचे, जिनके दर्गन करने का सौभाग्य सुके कभी नहीं मिला था, लेकिन भविष्य मे (मृत्यु के अ्नन्तर) जिनसे हमारा सम्मिलन होगा । हम सब तत्र तारागण से परिपुरित भ्राकाश के फर्न पर वैठे हुए नीचे श्रपनी जननी जन्म-भूमि झायरलैण्ड के दर्गन करेगे । उस समय हम अपने भिन्न-भिन्न स्वप्नो का सगम देखेगे--उन स्वप्नो का, जो हमारे श्रन्घकारमय समय में एक-दूसरे के विरोधी प्रतीत होते थे--श्रौर तब हमारे वे स्वप्न विविध धाराश्रो के सम्मिश्रण से उत्पन्न एक महान्‌ नदी का रूप धारण कर लेंगे श्रौर वहू नदी चकाचौध उत्पन्न करने वाली महान्‌ ज्योति के रूप में होगी ।” श्र ्ायरलैण्ड ने श्रपने झहीदों के लिए क्या किया ? श्रीयुत चमनलाल (पत्रकार) ने डबलिन- स्थित्त घहीदो के श्रजायवघर का ब्रृत्तान्त नवम्बर १९३४६ के “विप्लव' मे लिखा था। उसका साराश सुन लीजिए--“श्रायरलैण्ड के राप्ट्रीय वीरो का यह स्मारक शझ्रायरलैण्ड की पार्लमिण्ट के विशाल भवन में कायम है । इस श्रजायवघर मे मुल्क की श्राजादी की लडाई मे भाग लेने वाले वीरो श्रौर उस युद्ध की घट- नाश्रो की स्मृतियो का एक बहुत प्रभावणाली सग्रह है । इसमें उन वी रो की ्रादमकद सूरत्तियाँ है । वे वर्दियां है, जिन्हे पहनकर उन्होंने प्रपनी लडाइयाँ लडी । उनके हथियार है, चिह्न, वेज, कण्डे इत्यादि भी है । उनकी लिखी पुश्तके, उनके व्यास्यान, ऐलान तथा पत्र इत्यादि खूब सुरक्षित ढग से रक्‍खे हुए है। श्रायरलैण्ड के स्त्री-पुरुप, वृद्ध और वच्चे वहाँ पहुँचकर आ्रौर इन स्मृति-चिह्लो को देखकर राष्ट्री यता का पाठ पढते है। जिन जनरल राजर्सं केसमेण्ट को भ्रेंग्रेजो ने फॉसी दी थीं, उनके जीवन की सम्पूर्ण गाथा श्रापको यहाँ देखने को मिलेगी । प्रथम महायुद्ध मे उन्होंने जर्मनी की सहायता से एक श्रायरिश सेना तैयार की थी श्र जहाज द्वारा वे ग्रा ही रहे थे कि जहाज श्रग्रेजो के हाथ पड गया ! केसमेण्ट को फॉसी हुई पर राप्ट्रीय श्रजायबघर में वे श्रव भी जिन्दा है । 'कीततिय॑स्थ स जीवति ।' इस श्रजायवघर मे झ्ायरलैण्ड के प्रसिद्ध घहीद टेरेस मैक- स्विनी का भी चित्र मिलेगा, जिन्होंने ७४ दिन का झनशन करके अपने प्राण दिए थे। जनरल माइकेल कोलिन्स की भी मूत्ति विद्यमान है। हैरीवोलैण्ड सुप्रसिद्ध वीर सेनापति डी वेलेरा के सेक्रेटरी थे । एक सकट के समय वे श्रपने जूते के तले मे छिपाकर एक पत्र डी वेलेरा के लिए ले गए थे । वे मार डाले गए, पर उनका वह जूता श्रव भी सुरक्षित है ! इस सग्रहालय मे श्रापको वीर वालक केवनवेरी का वृत्तान्त मिलेगा, जिसे फाँसी दी गई थी । उसकी उम्र १८ वर्ष की थी । कही श्रापकों क्रान्तिकारियो द्वारा प्रकाशित ऐलानों का सग्रह मिलेगा, तो कही राष्ट्रीय हुडी ! कही 'माउण्ट जोय' जेल मे भुख-हडताल करने वालो की मूत्तियाँ खडी है, तो कही श्रायरिश शहीदों के चित्रों के ऐलबम ' श्रौर तो श्रौर उन शहीदों द्वारा व्यवहार मे लाई जाने वाली चीजें भी संग्रह कर ली गई है--यथा उनकी श्रग्गूठियाँ, प्याने श्र पेसिलें इत्यादि ! जगह- जगह गोलियो से छिदे कपडे तथा टोपियोां रक्खी हुई है ।” यदि दिल्‍ली मे न हो सके, तो क्या भिन्न-भिन्न प्रान्तो की राजधानियो मे ऐसे सप्रहालय हम नद्दी बना सकते ? पर केन्द्रीय सरकार अथवा प्रान्तीय सरकारों के भरोसे वैठे रहने से तो यह काम जिन्दगी-भर मे नही होने का । इस वारे मे भी हम विकेन्द्रीकरण की नीति के पक्षपाती है । जो वीर जहाँ पर दहीद हुआ




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