राष्ट्र पुरुष | Rashtra Purush

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चर्द्रयुप्त श्दे जाती थी । श्पराधी हिंद होने पर उन्दे भी साधारण नागरिक की माँति दंड भुगतना पढ़ता था । झस्त्रशस्त्रो के बनाने वाले, रयें और जदाज़ों के निर्माण करने वाले, सरकारी कर्मचारी माने जाते थे और उन्हें राजय द्वारा वेतन मिलता था । उन्दे साघारण नागरिकों के लिये अस्त्र बनाने या उनका अन्य कार्य करने की सख्त मनादी रहती थी । इसी प्रकार लुद्दार, वदई तथा झन्व शमिकों पर राज्य का विशेष झनुशासन था ,* सड़कों के बनाने और उनकी निगरानी के लिये राज्य की ओर से विशेष अधिकारी नियुक्त थे । प्रत्ेक आधे कोस पर एक शिला थी; जिस पर श्रन्तर लिखे रहते थे । एक राजमार्य मी बनाया गया था, जो पाठलिपुत्र से पेशावर तक गया था । उपरोक्त वर्णन से यह स््र है कि चन्द्रगुप्त के समय में मारत की. सम्यता उन्नतावस्था में थी । कला, सैम्यब्ल, शासन-प्रबंध, घर्म, सदाचार सभी बातों में भारत उन दिनों संसार के किती भी देश से बढ़ा-च 1 था । यद्यपि शिलाओं पर लेखन की प्रथा चन्द्रयुप्त के पोते अशोक ने दी श्रारम्म की; फिर भी चन्द्रगुप्त के समय में ताड़ के पत्तों तथा कपडा पर लिखने की प्रथा प्रचलित थी ! शिन्ना निवायं थी | * चन्द्रयुप्त ने अरने बडे साम्राज्य को कई प्रान्तो में विभाजित कर दिया । प्रत्येक प्रात का एक शासक ( अधिपतिं या राष्ट्रीय ) था जो राजा का प्रतिनिधि था,और जिरुका झोहदा श्ाज के राउयपाल के वरा- बर होता था तक्तशिला, उज्जैन. कौशाम्वी, गिरनार, तोरली और स्व्णगिरी नगर इन पान्ता की राजघानियाँ थी । प्रान्त के याँवों वो 'घामाणी' कहा जाता था | १०, २०; इ ००३ श्ौर १०००, योवो के समू्दों के अधिकारियों को क्रमश, दसी, विमती




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