मेरी कहानी | Meri Kahani

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Meri Kahani by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ मेरी कहानी विधवा पत्नी, पुराने हिन्दू ग्रन्थों की बहुत जानकारी रखती थी । उनके पास हानियों का तो मानो खजाना ही भरा था । घम क॑ मामले में मेरे खयाछात बहुत धधले थे । मझे वह स्त्रियों से सम रखनेवाला विपय मालूम होता था । पिताजी ओर वड चचेरे भाई धर्म की बात हँसी में उडा दिया करते थे और इसपर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे । हाँ, हमारे की ओरते अलवत्ता पुजा पाठ ओर व्रत-त्योहार किया किया करती थी । हालॉकि इस मामले स घर के बडे-वूढे अदामियों की देखा-देखी उनके तात्त्कालिक आचरण कोशिश किया करता था, फिर भी कहना होगा कि में उनका रस लिया करता थ कर्मा-कभा मे अपनी मा था ताई के साथ गगा नहांन जाया करता, ओर क इलाहावाद या काजी या दूसरी जगह मन्दिरो में भी या किसी नामी ओर बडे सा मन्यासी के दर्जन के लिए भी जाया करता । मगर इन सबका बहुत कम असर 1 दिल पर हुआ | फिर त्योहार के दिन आते थे--होली जबकि सारे दाहर में रगरेलियो की ध मच जाती थी ओर हम लोग एक दूसरे पर रग की पिचकारिया चलाते थे, दिवाल॑ रोधनी का त्यौहार होता जबकि सब घरों पर धीमी रोशनीवाले मिट्टी के हजा पाय जलाय जात, जन्माप्टमी, जिसमें कि जेल में पैदा हुए श्रीकृष्ण की आधीरात < पपगाठ मनाए जाती (लेकिन उस समय तक जागते रह हमारे लिए बडा महक टोना था) रा आर रामलाला, जिसमें कि स्वॉग ओर जलसो के रा रामचर जोर जका-विजय की पुरानी कहानी की नकल की जाती थी ओर जिन्हें देखने के छि' सागा को बडी भारी भीड़ इफट्ठी होती थी । सब बच्चे म दरम का जठस भी देखा जात बे, जिससे रेशमी अलम होते थे और फुदुर अरब मं हसन ओर हुसैन के साध सन घटनाओं की यादगार में दोकपुर्ण मरसिये गायें जाते थे । दोनो ईद पर मुर्गी बडिया कपडे पट्नकर बड़ी ससनिद में नमाज के लिए जाते और में उनके घर जाकर मीठी नेवेया जार दसरी वढ़िया चीजे खाया करता। इनके सिवा रक्षावन्धन, ननानदुश बर्गेरा छोटे स्याहार भी हम टम लोग मनाति थे । जिन्हे उत्तर में बढ़तेरे दूसरे हिन्दू मी मन पडा नाराज याने वर्ष-प्रतिपदा का त्योहार है । इस दिन हम दे पहनकर यनव्दनकर निकलते ओर घर के बच्चे छड़फे-लडकियों को। बजे हे लोर पर उुझ पेसे मिड करने थे । ने लम्गस उन्सवों में जे एय सेलिना जमे में ज्यादा दिलचर रह जी पलिसशा जाने सुससे सा दे बनाने मेरी याद का उत्सव




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