श्रीरमण वाणी भाग - 1 | Shri Raman Vani Bhag - 1

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Book Image : श्रीरमण वाणी भाग - 1  - Shri Raman Vani Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कर्म और त्याग पा परन्तु मैंने दो दुर्भाग्यवदा आत्मा का साक्षात्कार नहीं किया है अब. तक |] म--हाँ, तुम्हारे छिए वही तो रुकावट है । तुम्हें यह ख्याल छोड़ देना चाहिए कि तुम अज्ञानी हो और अभी ठुम्हें आत्मा का साक्षात्कार करना वाकी है । तुम आता ही हो। क्या कभी ऐसा कोई समय रहा नव कि तुम उस आत्मा को लानते नहीं थे भक्त--तब क्या हमें नींद में जागने और दिन में स्वप् देखने का अभ्यास करना होगा १ म--(हिसते हैं) भक्त--मैं मानता हूँ कि मनुप्य का स्थूू शरीर आता का अखण्ड ध्यान करने के परिणाप स्वरूप समाधि सें प्रवेश करता है व इस कारण से स्थिर भी हो सकता है। ऐसी दशा में धरीर सक्रिय भी हो सकता है व निष्क्रिय भी । ऐसे ध्यान में अवस्थित मन पर दारीर या ईंद्रियों की क्रियाओ का असर नहीं होता अथवा मन की अशांति के कारण शारीरिक क्रिया होती है सोभी नहीं है। दूसरे जोर देकर कहते है कि णारीरिक क्रियाएँ समाधि या अखण्ड ध्यान में अवद्य ही वाधा ढाठती है । इस विषय में भगवान का क्या अमिप्राय है ? मेरे कथन के छिए आप ही प्रत्यक्ष प्रमाण है | न




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