सुलह की जंग गंगा तरंग | Sulah Ki Jang Ganga Tarang
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
406
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'आाचन्दू द.
हुए । इसमें बड़ी घूम-दाम से ब्रह्ममोज कराया गया था, दीन-
दुखियों को रोटियाँ बॉटी गई थीं, बड़े उत्साद से इवन की
वम्न प्रज्वलित की गई थो । एक तो वबद्द दिन था, झाज्ञ यह.
दिन है कि सारा मक्रान श्राहुतिरूप हो रद्दा है । वेद को ऋचाओं
की जगह क्रंदन और रुदन की ध्वनि हो रही है। लोग उस
दिन भी एकत्रित थे, जब हवेली बनी थी; आज भी एकत्रित हैं,
जब हवेली नष्ट दो रही द--
घर चनाऊँ ग़ाक इस वहशतकदा' में नासिष्टां ;
श्राए जब मजदूर सुष्पको गोरकनी याद झा गया।
वाह रे संसार ! तेरी नश्वरता ! वाह रे मनुष्य ! तेरा प्राण--
समपण ! बहूजी श्मौर वावूजी कहाँ हैं ? दास-दासियाँ किघर
हैं? नन्हों क्यों नहीं दिखाई देता ? सघ तढ़प रहे हैं, '्ौर सब
तो मकान के वाददर हैं, किंतु बच्चा घर के भीतर ।
बचू साहब निढाल तो. पहले दी से थे, यदद हृदय-विदारक -
सूचना सुनने की देर थी कि मन-मुकुर पर श्ौर भी देस लगी ।
घ्घीर होकर रोना छारंभ किया । कलेजा वल्लियों उछलने
लगा | दुःख से दाथ मलने लगे, और विल्ला-चिल्लाकर वोले--'
“झरे ! कोई मेरे हृदय-खंड ( नन्ददे ) को बचाओों । उसकी
जान के लाले पढ़ रहे हैं। तलमला रहा है। अभी समय है।
ऐसा न हो; जल-भुनकर राख हो जाय । दज़ार रुपया इनाम ।'
जीवन-भर गुलाम रहूँगा। वचाओो,; चचाओ ! इश्वर के लिये.
बचाद्ओो ।””
बहूजी सोने के 'आझाभूषण उततार-उतारकर फेंक रददी है कि
यद्द लो, मेरे लाल को मुम से मिला दो । दादी छाती कूट रद्दी
है, “हाय सें मरी ; मैं मरी । सेरा नन्ददं, सेरा नन्दाँ !” सेवा
करनेवाली दासियाँ अलग विज्ञविला रदी हैं । बच्चे की दुःखमय
१ भयानक स्थान । २ उपदेशक 1 दे कब खोदनेवाला |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...