सुलह की जंग गंगा तरंग | Sulah Ki Jang Ganga Tarang

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Sulah Ki Jang Ganga Tarang by स्वामी रामतीर्थ - Swami Ramtirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'आाचन्दू द. हुए । इसमें बड़ी घूम-दाम से ब्रह्ममोज कराया गया था, दीन- दुखियों को रोटियाँ बॉटी गई थीं, बड़े उत्साद से इवन की वम्न प्रज्वलित की गई थो । एक तो वबद्द दिन था, झाज्ञ यह. दिन है कि सारा मक्रान श्राहुतिरूप हो रद्दा है । वेद को ऋचाओं की जगह क्रंदन और रुदन की ध्वनि हो रही है। लोग उस दिन भी एकत्रित थे, जब हवेली बनी थी; आज भी एकत्रित हैं, जब हवेली नष्ट दो रही द-- घर चनाऊँ ग़ाक इस वहशतकदा' में नासिष्टां ; श्राए जब मजदूर सुष्पको गोरकनी याद झा गया। वाह रे संसार ! तेरी नश्वरता ! वाह रे मनुष्य ! तेरा प्राण-- समपण ! बहूजी श्मौर वावूजी कहाँ हैं ? दास-दासियाँ किघर हैं? नन्हों क्यों नहीं दिखाई देता ? सघ तढ़प रहे हैं, '्ौर सब तो मकान के वाददर हैं, किंतु बच्चा घर के भीतर । बचू साहब निढाल तो. पहले दी से थे, यदद हृदय-विदारक - सूचना सुनने की देर थी कि मन-मुकुर पर श्ौर भी देस लगी । घ्घीर होकर रोना छारंभ किया । कलेजा वल्लियों उछलने लगा | दुःख से दाथ मलने लगे, और विल्ला-चिल्लाकर वोले--' “झरे ! कोई मेरे हृदय-खंड ( नन्ददे ) को बचाओों । उसकी जान के लाले पढ़ रहे हैं। तलमला रहा है। अभी समय है। ऐसा न हो; जल-भुनकर राख हो जाय । दज़ार रुपया इनाम ।' जीवन-भर गुलाम रहूँगा। वचाओो,; चचाओ ! इश्वर के लिये. बचाद्ओो ।”” बहूजी सोने के 'आझाभूषण उततार-उतारकर फेंक रददी है कि यद्द लो, मेरे लाल को मुम से मिला दो । दादी छाती कूट रद्दी है, “हाय सें मरी ; मैं मरी । सेरा नन्ददं, सेरा नन्दाँ !” सेवा करनेवाली दासियाँ अलग विज्ञविला रदी हैं । बच्चे की दुःखमय १ भयानक स्थान । २ उपदेशक 1 दे कब खोदनेवाला |




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