राजस्थान - केशरी महारणा प्रताप सिंह | Rajasthan Kesari Maharanapratap Singh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Rajasthan Kesari Maharanapratap Singh by श्री राधाकृष्ण दास - Shri Radhakrishna Das

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री राधाकृष्ण दास - Shri Radhakrishna Das

Add Infomation AboutShri Radhakrishna Das

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ ९ 1]. अषाढ़ सुदी १३ संवत १५३५ का उसका मुजरा हुआ । बाद- शाह ने उसको अरज से दूदा के कसूर बख्श दिए । _ “ादबाजखां के जाने पर महाराणा बाँसवाड़े की तरफ से प्पन के पहाड़ों में आए ओर बादशाह थानों को काटने लगे । बादशाह ने फिर पोष बदी १४ संवत ३५ को शहबाजखां और गाजीखां को मेज मुददम्मद हुसेन, शेख तेमुर बद्खशी ओर _ सीरजादा अछीखां और बहुत से अमीरों को साथ किया 1 महाराणा फिर पहाड़ों के ऊपर चढ़ गए | शहबाजखां फिर हा तीन महीने तक मेवाड़ में फिरा और थानों में हर जगद कारयगुज़ार आदमी रख कर पीछे चला गया और जेठ खुदी १४ संवत १६३६ को बादशाह के पास पहुँचा और महाराणा को फिर अपने काम करने का मोका मिख गया जिससे कातिक बदी १३ संचव १६३६ को बादशाह खुद अजमेर में आए और खुदी १९२ को पीछे जाने उगे । तब मुकाम साँभर से फिर शहूबाज़खां को. सूबे अजमेर का बन्दोबस्त कायम रखने के _ चास्ते छोड़ गए । इससे पाया जाता है कि मद्दाराणा ने मेवाड _ के सिवाय ओर जगह भी सूबे अजमेर में दस्तन्दाजी की थी। “शहबाजखां ने फिर महाराणा का पीछा किया । इस दे . उनकों बहुत सुश्किल पड़ी, खाना खाने तक की फुरसत नहीं _ मिलती थी । जिघर जाते थे दुश्मन पीछा दबाए चला आता था । एक दिन ऐसा हुआ कि पाँच दुफ्य खाना छेषड _ भागना पड़ा ऐसा बिखा कभी. किसी के नहीं हुआ हैागा _ कि दुश्मन हरदम तलवार लिए हुए सिर पर खड़ा मिछे और . दिखे का भुगतना भी महाराणा प्रतापर्सिह का ही काम था . . कि जा ऐसी ऐसी कड़ी भेखते थे । बड़े लोगों ने जा यह _ बचन कहा है कि सूरबीर उसके कहना चाहिए. कि जिसके




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now