पाँच - सदस्य | Panch-sadasya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'पाँच सदस्य १४
सासीरके प्रश्नका उत्तर देनेके लिये स्रोतस्विंदी व्याऊल हो
उठी थी और दीसि ध्यान न देनेका भान करके टेवुल पर रखी
हुई पुस्तककों खोलकर देखने लगी ।
शितिने कददा--तुमने बंकिम बाबूके जिन कई एक उपन्यासों-
'का उल्लेख किया है, उनमें सभी मानस प्रधान है, कम्सेंप्रधान
कोई नहीं । मानस जगतसें खियोंकी ही प्रधानता अधिक होती
है, कम जगतमें मनुष्यका प्रभुव्व अधिक है. । जहां सिफ हृद्यवृत्ति
का प्रसज्ञ होगा, वहाँ पुरुष-स््रीके सामने डट केसे सकता है!
काय्य च्ेत्रमें ही उसके चरित्रका पूर्ण विकास होता है. ।
दीप्रि झब चुप न रह सकी । पुस्तक फेक, उदासीनताका
भाव त्यागकर बोल उठी--क्यों ? दुंगेश-नन्दिनीमें बिमलाका
्बरित्र किस कामसें विकसित नहीं हुआ ? इतनी निपुणुता, इतनी
'तस्परता और ऐसा अध्यवसाय उक्त उपन्यासमें कितने नायकोंमें
. पाया जाता है! झानन्द्मठ तो काय्य-प्रधान उपन्यास है ।
'सत्यानन्दू, जीवानन्द, सबानन्द इत्यादि सन्तान-सम्प्रदायके पात्रोंने
काम किया है. सद्दी, पर उनके कायय कविके वर्णन सात्र हैं, यदि
किसीके चरित्रमें कार्य्यकारिताका पूर्ण और वास्तविक विकास
हुआ है तो शान्तिके चरित्रमें; देवीचौधरानीमें किसने कठ स्वपद्
प्राप्त किया है? खीने। किन्तु क्या वह प्रभुरव--वह कठ त्व
'1न्तःपुरका है? कभी नहीं ।
ससीरने कहा--भाई छिति ! तकशाख्रकी सरल रेखा द्वारा
सभी चीजॉंको नियमित रूपसे श्रेणीबद्ध नहीं किया जा सकता ।
शतरबझकी पटरी पर ही लाल काले रंगके खाने काटे जा सकते
हैं, क्योंकि वह निर्जीव काठकी चीज है पर मनुष्य का चरित्र तो
उतनी साधारण चीज नहीं है। तुम झनेक युक्तिबलसे भाव
अधान, कम्मंप्रधान इत्यादि कितनी ही अकास्य सीमाओोंका निर्देश
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