साम्यवाद की चिन्गारी | Samyavad Ki Chingari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.36 MB
कुल पष्ठ :
270
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३ साम्यवाद की चिनगारी
था तो सेठ-समुदाय में था मज़दूर-समुदाय में सर्मिक्ित होना
पढ़ा । व्यक्तिवाद का प्रायः थन्त द्ोगया |
यह वह समय था, जब नैपोक्षियन शर उसकी थुद्ध-नीति
से योरोप का पीछा छूद चुका था । कुछ लोगों को जब अपार
घन कमाने की इच्छा ने वश में कर लिया । दूसरी थोर यह
दावा किया जाने लगा कि सात बनाने में मजदूरों का हाथ है;
बिना उनकी सहायता के मात्त बन दो नदीं सकता है, और
इसलिए लाभ में उचित भाग न देकर मजदूरों को सेठ लोग
लुढ रहे हैं । सन् १८१४ के पश्चाद ान्दोखषन इसी बात पर दोने
लगा । झब इस बात की झावश्यकता शनुभव हुई कि मजदूरों
के हितों की रक्षा के लिए भी कोई संस्था बनाई जाय । परिणाम-
स्वरूप 'ट्रेड यूनियन्स' की उत्पत्ति हुईं। यह सब को निश्चय
होगया था, कि मज़दूरों के साथ घोर न्याय हो रहा है । इसके
अतिकार के लिए नाना प्रकार के उपायों का मिन्न-सिन्न व्यक्तियों
ने समर्थन किया । झोवेन के थनुयायियों ने “ब्रेड नेशनल
कान्सालिडेटेड ट्रेड्स यूनिदन' स्थापित किया । 'बेनवो' ' ने
हड़ताल पर ज्ञोर 4. दिया|इससे मालूम दोता है कि इस समय '
छासन्तोष बहुत बद गया था । इसी विषय में लितने भी साधन
सरभव थे, सब की चर्चा किसी-न-किसी ने कर दी डाली । पर
दो वातों की कमी थी; ठीक उपायों की, और परिस्थिति को
पुर्ुतया समकने की ।
... ईंगलैरड के वह लेखक, जिन्दोंने साम्यवाद पर झारमभ में
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