साम्यवाद की चिन्गारी | Samyavad Ki Chingari

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Samyavad Ki Chingari by श्री बाबु संपूर्णानंद

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श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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हेराल्ड जे लास्की - Harold J Laski

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ साम्यवाद की चिनगारी था तो सेठ-समुदाय में था मज़दूर-समुदाय में सर्मिक्ित होना पढ़ा । व्यक्तिवाद का प्रायः थन्त द्ोगया | यह वह समय था, जब नैपोक्षियन शर उसकी थुद्ध-नीति से योरोप का पीछा छूद चुका था । कुछ लोगों को जब अपार घन कमाने की इच्छा ने वश में कर लिया । दूसरी थोर यह दावा किया जाने लगा कि सात बनाने में मजदूरों का हाथ है; बिना उनकी सहायता के मात्त बन दो नदीं सकता है, और इसलिए लाभ में उचित भाग न देकर मजदूरों को सेठ लोग लुढ रहे हैं । सन्‌ १८१४ के पश्चाद ान्दोखषन इसी बात पर दोने लगा । झब इस बात की झावश्यकता शनुभव हुई कि मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए भी कोई संस्था बनाई जाय । परिणाम- स्वरूप 'ट्रेड यूनियन्स' की उत्पत्ति हुईं। यह सब को निश्चय होगया था, कि मज़दूरों के साथ घोर न्याय हो रहा है । इसके अतिकार के लिए नाना प्रकार के उपायों का मिन्न-सिन्न व्यक्तियों ने समर्थन किया । झोवेन के थनुयायियों ने “ब्रेड नेशनल कान्सालिडेटेड ट्रेड्स यूनिदन' स्थापित किया । 'बेनवो' ' ने हड़ताल पर ज्ञोर 4. दिया|इससे मालूम दोता है कि इस समय ' छासन्तोष बहुत बद गया था । इसी विषय में लितने भी साधन सरभव थे, सब की चर्चा किसी-न-किसी ने कर दी डाली । पर दो वातों की कमी थी; ठीक उपायों की, और परिस्थिति को पुर्ुतया समकने की । ... ईंगलैरड के वह लेखक, जिन्दोंने साम्यवाद पर झारमभ में




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