बुद्ध और बौद्ध साधक | Buddh Aur Bauddh Sadhak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भरत सिंह उपाध्याय - Bharat Singh Upadyay
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बुद्ध के स्वभाव व जीवन की विशेषताएँ ६
यही उनकी सम्पदा है।”” थेरगाथा( ६४ ६-४७) । मद्दाकार्यप ने भो इसो
का साय देते हुए कहा हैं, “सदा चरति निष्बुतो” श्रधात् मद्दाशानी
खुद सदा निर्वाण प्राप्ति की अवस्था में ही विहरते हैं । हसे ही हम
-गोतम का 'बुद्दत्व” कहते हैं ।
भगवान् चुद्ध के विषय में कहा गया है कि उनका कोई ऐसा छिपा
इन्ना कायिक या मानसिक कर्म नहीं था जिसके लिये उन्हें चित्त का
-सन्ताप उठाना पड़े या दूसरों के सामने केडिजत होना पढ़े । उनका
बाहर भीतर एक था । जिन नियमों का उन्होंने उपदेश दिया उनका
स्वयं पूरा पान किया । फिर मी वे झ्रपने को झति-मानुषी कोटि में
नहीं रखना चाहते थे । उनमें बुद्धस्व की पएूणे कमता थी, किन्तु साथ
ही श्रपूव विनय्रंता भी । संयुत्त-निकाय का एक प्रसंग इस सम्बन्ध
में श्रस्यन्त मददत्वपूर्ण दै । एक दिन भगवान् पूर्णमासी के दिन खुज्ी
जगद्द में मिछुओं सहित बेठ हुए थे। सन्ध्या का समय था। मिद्च
ज्ञोग मविप्य के संयम के लिए श्पने अपराधों को देशना (क्षमा-
याचना) कर रहे थे । सबके बाद में भगवान् ने मिचुद्ों को सम्बोधित
'किया, “भिचुद्नो ! यदि मेरे अन्दर कोई काया सम्बन्धी, वाणी
“सम्बन्धी या विचार-सम्बन्धी दोष देखते हो तो मुक्ते बतलाझं ।””
इसी प्रकार जब एक बार एक ब्राह्मण ने भगवान् से पूछा, ““भन्ते !
क्या झाप दिन में सोने की झनुमति देते हैँ ?” तो भगवान् ने झत्यन्त
'विनख्रता-पूवक और स्पष्टतापूर्वक स्वीकार किया--““पिछुले गर्मी के
महीने में, एकबार भिक्षा से लॉटने के बाद, भोजन करने के पश्चात्
सुके स्मरण झाता है, सोधे करवट से, स्मृति को सामने रखकर
इन्दिय-संयमपूवक चौपेती पेटी हुई चादर पर लेटते हुए अपना
सपकी लगकर सो जाना ।” अति-मानुषी शक्ति का भगवान् तथागत
ने कभी दावा नहीं किया । उन्होंने मानवीय पुरुषाथ की महिमा
-गाते हुए सदा यही कहा कि उसके द्वारा जो कुछ लभ्य है वही
उन्होंने पाया है । इसीलिए झपने झापकों अन्य सब मनुष्यों के
User Reviews
No Reviews | Add Yours...