बुद्ध और बौद्ध साधक | Buddh Aur Bauddh Sadhak

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Buddh Aur Bauddh Sadhak  by भरत सिंह उपाध्याय - Bharat Singh Upadyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बुद्ध के स्वभाव व जीवन की विशेषताएँ ६ यही उनकी सम्पदा है।”” थेरगाथा( ६४ ६-४७) । मद्दाकार्यप ने भो इसो का साय देते हुए कहा हैं, “सदा चरति निष्बुतो” श्रधात्‌ मद्दाशानी खुद सदा निर्वाण प्राप्ति की अवस्था में ही विहरते हैं । हसे ही हम -गोतम का 'बुद्दत्व” कहते हैं । भगवान्‌ चुद्ध के विषय में कहा गया है कि उनका कोई ऐसा छिपा इन्ना कायिक या मानसिक कर्म नहीं था जिसके लिये उन्हें चित्त का -सन्ताप उठाना पड़े या दूसरों के सामने केडिजत होना पढ़े । उनका बाहर भीतर एक था । जिन नियमों का उन्होंने उपदेश दिया उनका स्वयं पूरा पान किया । फिर मी वे झ्रपने को झति-मानुषी कोटि में नहीं रखना चाहते थे । उनमें बुद्धस्व की पएूणे कमता थी, किन्तु साथ ही श्रपूव विनय्रंता भी । संयुत्त-निकाय का एक प्रसंग इस सम्बन्ध में श्रस्यन्त मददत्वपूर्ण दै । एक दिन भगवान्‌ पूर्णमासी के दिन खुज्ी जगद्द में मिछुओं सहित बेठ हुए थे। सन्ध्या का समय था। मिद्च ज्ञोग मविप्य के संयम के लिए श्पने अपराधों को देशना (क्षमा- याचना) कर रहे थे । सबके बाद में भगवान्‌ ने मिचुद्ों को सम्बोधित 'किया, “भिचुद्नो ! यदि मेरे अन्दर कोई काया सम्बन्धी, वाणी “सम्बन्धी या विचार-सम्बन्धी दोष देखते हो तो मुक्ते बतलाझं ।”” इसी प्रकार जब एक बार एक ब्राह्मण ने भगवान्‌ से पूछा, ““भन्ते ! क्या झाप दिन में सोने की झनुमति देते हैँ ?” तो भगवान्‌ ने झत्यन्त 'विनख्रता-पूवक और स्पष्टतापूर्वक स्वीकार किया--““पिछुले गर्मी के महीने में, एकबार भिक्षा से लॉटने के बाद, भोजन करने के पश्चात्‌ सुके स्मरण झाता है, सोधे करवट से, स्मृति को सामने रखकर इन्दिय-संयमपूवक चौपेती पेटी हुई चादर पर लेटते हुए अपना सपकी लगकर सो जाना ।” अति-मानुषी शक्ति का भगवान्‌ तथागत ने कभी दावा नहीं किया । उन्होंने मानवीय पुरुषाथ की महिमा -गाते हुए सदा यही कहा कि उसके द्वारा जो कुछ लभ्य है वही उन्होंने पाया है । इसीलिए झपने झापकों अन्य सब मनुष्यों के




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