श्री प्राकृत विज्ञान पाठमाला | Shri Prakrit Vigyan Pathamala

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Shri Prakrit Vigyan Pathamala  by चंद्रोदय विजयजी - Chandroday Vijayji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ आनन्दने पामे छे; तथा “स्त्रीणां तु प्राकुर्त प्राय” ए. वचन पण महिलामनोवल्लभता प्रदर्शित करे छे, राजप्रियता -स्वतन्त्र विचारश्रणीवाठा राजाओनो पण प्राकृत कपर असीम प्रेम हतो. राजकवि यायावरीय-राजशेखर, काव्यमीमांसामां प्राकृत तरफथी नृपमान्यताने नीचे प्रमाणे प्रदर्शित करे छे. “झयते च स्रसेनेषु कुविन्दो नाम राजा, तेन परुष- संयोगाक्षरवजेमन्तःपुर पवेति समाने पूर्वेण । ( काब्यमीमांसा प्र. ५० थूयतते च छकुन्तछेषु सातवाइनों नाम राज्ञा । तेन प्राकतभाषात्मकमन्तःपुर प्वेति समान पूर्ण । ( काव्यमीमांसा ए. ५० ) भावाथ:--समलाय छे के-सूरसेनदेशमा दुविंद नामनो राजा तो. तेणे परुषाक्षरो अने सयुक्ताक्षयो सिवायना अक्षरों द्वारा पोताना अन्तेउरमां भाषानियम प्रवर्ताव्यो हतो. वी सभठाय छ के-कुतलदेशमा सातवाइन नामनो राजा धयों दतो. तेणे पोताता अन्तेउरमां प्राकृतभाषात्मक नियम प्रवर्तान्‍्यों हतो, दक्षिण महाराष्ट्रना सावभौम प्रतापी कविवत्सल हाल महाराजाए, हार तथा वेणीदण्ड वगेरेना वर्णनवाछी चार गाथाओने दश क्रोड्थी अने अन्य चार गाथाओने नव कोडथी, गाधासत्तशतीमां . संग्रहीत करी' हती. कविवत्सल हालथी बहुमानने पामेला श्री पादलिप्तसूरि महाराज, रसिक मनोहर तेमज विस्तारवाठी 'तरऊुबती' नामनी जे कथा रची हती, ते कथा ते ज राजाना राजदरबारमां विद्वानोनी मेदनी समक्ष (वांची) शक 'कैंने जेनी नेक मदकविओए मुकेठे प्रशंसा पण हती.




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