विश्वामित्र | Vishwamitra

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Vishwamitra by बाबू जमुनादास मेहरा - Babu Jamunadas Mehara

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ ( ागे आगे विश्वामित्र ओर उसके पीछे खिपाही तथा जमदझिका प्रस्थान । ध्ानन्दी रह जाता है । ) आनम्दी -( स्वतः ) महाराज विश्वासित्रने तो भगवान जाने मेरे भोजनमें वाघा देनेका विचार किया है । तो मैंने भी अब यहांसे अपना प्राण बचाकर प्रथ्यान करना ही स्वीकार किया है । जाऊं, जाऊँ राजघानीकी ओर प्रश्यान कर्क, कहीं ऐसा न हो, कि वशिष्ठके सो पुत्नोंमेंसे एक दो मेरे पीछे भी पड़ जायें । ( अानन्दी का प्रस्थान ) हश्द-सोसरा । कला च्ि लता शक ( स्थान नीछायल ) ( चशिष्टा श्रम ) वरशिष्ठ मुनिके सो पुत्र विश्वामिश्रको सेना द्वारा हत होते हुए दिखाई देते हैं, इसी समय वशिष्ट क्रोजित हुए आते हैं यार हत पुत्रों को देखकर इतकाशकों शोर हाथ जोड़ें इश्वरसे प्राथना करते दें । इसी सब्चय 'अझरून्घती तथा तीनों कन्याएः बाकर रुदन करतो हैं । चिश्वासित्रकी सेना बा श्रसके अस्ट्र चली जाती है ।




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