नरेश | Naresh

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Naresh by राधानाथ चतुर्वेदी - Radhanath chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) राष्ट्रीय नेता नहीं है । जिन व्यक्तियों में नेता होने की क्षमता है वे श्ापस की ईर्ष्या और दष में लड़े मरे जा रहे हैं । कोई उनको रोकने वाला नहीं है । इसके अलावा पोप दुष्ट्तापूर्वक बिदेशियों को निमंत्रित कर इटली की दासता के पाश को श्र अधिक दृढ़ कर रहे हैं। मैंकियावली ने अपनी रचनाओं में एक नरेश को राष्ट्रीय नेता का रूप देने का यत्न किया । यह मत प्रकट किया कि जो नरेश हो उसे सबलतम बनाया जाय और पोप को सबंधा श्रधीन दशा में रखा जाय जिससे वे कभी देश- विरोधी काम करने के लिए सिर न उठा सकें । राष्ट्र राज्यों के प्रचार के कारण मध्ययुग की विश्व साम्राज्य श्रौर विश्वबंधुत्व वाली कल्पना १६ वीं शताब्दी के अ्ारंभ में शेष न रह गयी थी । मैकियाबली ने अपने युग की यह माँग भी स्वीकार की श्र विश्वराज्य या विश्वसाम्राज्य का कोई आदर्श श्रपनी रचनाओं में अंकित नहीं किया । सब लोग उस युग में उपना-अपना स्वार्थ ही देखते थे । इन श्रर्थों में व्यक्तिवाद की नींव पढ़ रही थी । मैकियावली ने नरेश को सम्पत्ति न छीनने की सलाह देकर व्यक्तिवाद का समथंन किया । यद्यपि यह सच है कि नागरिक स्वाघीनता या अधिकार जैसे किसी सिद्धान्त का प्रतिपादन उसने नहीं किया । ज्ञान के पुनरोदयकाल में लोगों ने धार्मिक-विश्वासों के बजाय बुद्धि और विवेक को कसौटी मान लिया था । लोग कोई भी बात इसलिए; मानने को तैयार नहीं थे; क्योंकि वह बाइबिल में लिखी है; बल्कि वे उसे तभी मानने को प्रस्तुत होते थे जब उन्हें यह विश्वास हो जाता था कि कोई बात, ग्रस्ताव या सुभाव उनकी अपनी समझ से भी ठीक है। ऐसी स्थिति में निगमना- . स्मक प्रणाली ( 1ज८0पटपएट पट ५00 ) का बहिष्कार स्वाभाविक है । लोगों का झ्नुभव की तरफ झुकना भी ठीक है । मैकियावली ने भी युग की प्रदृतति के अनुसार निगमनात्मक प्रसाली को छोड़ कर ब्याप्ति मूलक प्रयाली ( 10८४८ तट ५00 ) झअपनायी और अनुभूति मूलकता (छिप्णटा 80) यर बल दिया । सोलहवीं शताब्दी का इटालियन आदर्शों के बजाय व्यावहारिक एवं सांसारिक सफलता प्राप्त करने का




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