दश नाम नागे सन्यासियों का इतिहास भाग - 1 | Dash Nam Nage Sanyasiyon Ka Itihas Bhag - 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७. )
के पूष उनके आख्यानमूलक जीवन की एक संझिप्त:
चर्चा यहाँ की जायगी :
एक हजार वर्ष से अधिक हुआ, भारतीय मायद्वीप
के घुर दक्षिण में केरल अथवा कोचीन प्रदेश के केलेदी'
नामक ग्राम में, पूणा नदी के तट के निकट विद्याधिराज नामक:
एक ब्राह्मण रहते थे । वे मुख्यतः विद्योपाजन और उपा-
सना में तल्लीन रहा करते थे । बात यह थी कि वह सारा.
का सारा ग्राम हो अग्रहार दान के रूप में एक ब्राह्मण उप-'
निवेश को, जो एक प्राचीन राजा राजशेखर (इन राज
शेखर को “कपूरमंजरी-लेखक राजशेखर समझने की भूल,
न करनी चाहिए) द्वारा निर्मित शिवमंदिर के चारों ओर
बस गया था, प्राप्त हो गया था । उक्त ब्राह्मण के विद्वान.
पुत्र शिवगुरु और सत्वयुशमयी पुत्रवधू सती दोनों ही
शिव के परम भक्त थे और उनकी कृपा से उन्हें एक
आश्चयजनक सोन्दय और अलौकिक बौद्धिक शक्ति से
सम्पन्न पुत्र की पाप्ति हुई । बालक, जिसे शैक्षव ही में
पिहवियोग का सामना करना पड़ा, पाँच वष की अवस्था
में गुरु के आश्रम में भेजा गया जहाँ उसने दो ही वरष में
सम्पूर्ण हिन्दू शास्त्रों का उतना ज्ञान प्राप्त कर लिया
जितना संग्रह करने में अन्य लोगों को साघारणतया सोलइ
वूषे लगते हैं। अपनी माँ के सूने घर को लौटने पर इस असा-
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