हिन्दी की गद्य शैली का विकास | Hindi Ki Gadya Shaili Ka Vikas

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Hindi Ki Gadya Shaili Ka Vikas by शुकदेव बिहारी मिश्र - Shukdev Bihari Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उत्पत्ति ओर विकास भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति श्रपने विचारों का विनिमय दूसरे व्यक्ति से करता हे। भाषा मनुष्य जोवन के लिये श्रत्यंत श्रावश्यक बन गयी है | प्रत्येक राष्ट्र में, देश में कोई न कोई भाषा श्रवश्य प्रचलित है श्रौर उसी भाषा के द्वारा बढ़ँ के व्यक्ति श्रपना काय सरलता पूव क चलाते हैं । भारत की प्राचीन भाषा प्राकृत थी, जिसको कि भारत की सब 'प्रचलित भाषाश्रों की जननी का रूप दिया गया है । हज़ारों वर्ष तक यह देश की भाषा रही श्रौर एक से एक बढ़िया ग्रन्थ इसमें लिखे गये । उधर कालिदास के श्रमूल्य ग्रन्थ, वाल्मीकि की रामायण छादि संस्कृत की श्रमूल्य निधि हैं । संस्कृत श्रौर प्राकृत के बढ़ने के साथ श्लाथ एक दृढ़ भाषा को जन्म मिला जिसका कि नाम मागनी पढ़ा । एक लम्बे समय तक इसका प्रभाव भारत में रहा श्रोर प्रांतिक रूप में यह लोक प्रिय भाषा हो गयी । बहुत से बोद्ध ग्रन्थ भी पाली उपनाम मागधी में लिखे गये । पाली उपनाम मागधी के बढ़ने से श्रोर उसमें उच्चकोटि के ग्रन्थों के लिखे जाने के कारण सब साधारण जनता को इस बात की श्राव- श्यक्रता पढ़ी कि कोई ऐसी भाषा अपनायी जाय जिसको सरहता- पूष क सब लोग शसमक सकें ।* इस दृष्टिकोण को सम्मुख रखते हुये जो भाषा जनता के सामने श्रायी वह दूसरी प्राकृत कहलायी | यह भाषा श्रागे थलकर शपश्र श में बदली जिसके साथ साथ कई भारतीय भाषावें उंपडी जिनमें हिन्दी भी थी |




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