संगम | Sangam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संगम
उसकी पत्नी का मुख म्लान दो गया । मेरी नजर से यदद बात छिपी
नहीं रही । मैंने जेब से दो हजार के नोट निकाल कर उनके सामने
रखे दिये । श्रपने जीवन में कदाचित् उन्होंने इतने ढेर भर नोट न
देखे होंगे । घबरा गये पुरीडित, दोनों घबरा गये श्रौर लगे एक दूसरे
का मुँह ताकने तथा मेरी श्रोर देखने । पुरोहित सच जानो दोनों की
आत्मा क्रव्दन करती हुई उनकी श्राँखों में मैंने देखी । उसने कहा
“यह श्राप कया करते हैं, रायबहादुर--कन्या देकर पैसा लेना ! न--
न--यद न दोगा । श्राप इन्हें उठा लीजिये। बगेर ददेज लिए तो
कोई विवाद करने को राजी नहीं है श्रौर झाप बिला ददेज लिए विवाह
करने को तैयार हैं, यही क्या कम श्रानन्द की बात है ! पुरोदित, मेरी
श्राँखों में श्राँयूश्रा गये । कैता सरल दे यह मनुष्य, कैसी पवित्र श्रात्मा
है पुरोहित, इसे ही भारतीयता कइते हैं । भारतीय गरीबी में भी श्रपनी
श्रात्मा का खून न होने देगा । तब, जानते हो मैंने कया कहा ! झुपये
लेने के लिए मैंने उन्हें क्या कहा ! बताश्रो पुरोहित ”
पुरोहित सोच में पढ़ गया ।
'बताश्यों जरा सोचो---*
पुरोहित सिर खुजलाने लगा |
._ “बताश्रो-जरा झक्क से काम लो--
पुरोहित न सोच सका ।
तब माधव प्रसाद ने दसकर कहा-- इतनी सी बात भी न समझ
सके,' पुरोहित । मोंदू दी रहे । झरे मैंने कहा --यदद रुपये मैं तुम्हें नहीं
दे रहा हूँ । वुम्डारी जो झोर दो लड़कियाँ हैं, उन्हें दे रहा हूँ । उनके
लिए श्रच्छे से श्रच्छे वर दूंढ़कर यद्द रुपया दददेज में देकर विवाद कर
देना, समभे !--क्पों पुरोहित, केसी लोलहद श्राना बात रही, सच
कहा । श्रौर मैंने भी सोघा कि यदद उपकार भी क्या कम है । तीनों
लड़कियाँ एक साथ निबट जायेगी । श्रच्छा, अब में चलता हूँ । सात
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