विद्यार्थियों को सन्देश | Vidyarthiyon Ko Sandesha

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Vidyarthiyon Ko Sandesha by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारत को तात्कालिक आवश्यकता दे कपड़े पहनते है तो हम “स्वदेशी” भावना के प्रति विश्वासघात करते हें, किन्त यदि हम विदेशी दली के सिल॑ कपड़े पहनते है तो भी हमारा कृत्य उसी दर्ज का हुआ। निरुचय हो हमारे पहनावे को दाली का हमार वातावरण से कुछ सम्बन्ध होता ही हैं। सन्दरता और आराम की दृष्टि से यह पतलून और जाकिट से कहीं अधिक ऊँचे दर्जे का पहनावा ह। अगर कोई हिन्दुस्तानी पंट के ऊपर से ढोली-ढालो कमीज पहन ले. और नेक- टाइं तो न पहने लेकिन वार्स्कट चढ़ा लिये हो जो पीछे के तरफ़ उड़ रहा हो, तो यह दर्य देखने में बहुत अच्छा न मालूम पड़ेगा । धम में स्वदेशी धर्म के क्षेत्र में स्वदेशी हमें लानदार अतीत को समभने और उसे वतमान पीढ़ी में फिर से मेरा दिद्वास है कि यूरोपीय पहनावे की नक़ल करने की हमारी आदत हमारे पतन, दासता और हमारी कमज़ोरी का लक्षण है और हम एक एसे पहनावे की उपेक्षा करके जो भारतीय जलवायु के सबसे अधिक अनकल है, समची घरती पर सादगी, कलात्मकता ओर सस्तेपन की दृष्टि से अद्वितीय है और जो स्वास्थ्य-सम्बन्धी आवश्यकताओं की भी पति करता है, एफ राष्ट्रीय पपप कर रहे हैं। अगर भऋठ अभिमान और गोरव सम्बन्धी भठी घारणाओं की ही बात न होती तो यहां के अंग्रेजों न बहुत हो पहले भारतीय पहनावा अपना लिया होता। --स्पीचेज़ एण्ड राइटिंग्स ऑफ़ म० गोधी : पृ० २८३




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