वसंत क्या कहेगा | Vasant Kya Kahega

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Vasant Kya Kahega by बलराज साहनी - Balaraj Sahani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नसन्त चया कहेगा ? जीवन की कितनी घटनायें ऐसी होती हैं, जिनकी कहानी नहीं बन सकती, लेकिन उनकी याद कुछ ऐसा विलक्षण श्रानन्द दे जाती है कि व्यक्ति उसे छदय से लगाये बिना नहीं रद्द सकता । श्र इस याद को ताज़ा करने. के लिये फ़िज़,ल सी चीज़ काफ़ी हैं--गुसलखाने में किसी विशेष साबुन की खुशबू, तेज़ हवा में रोशनदान की ठक ठक.... उनके पास तीन ही. तो कमरे थे । तिस पर गीली दीवारें श्रौर चूहों की पीठ पर टिके हुये फ़श । कोई वस्तु ठिकाने न थी । छुतों पर जालों की मसहरियाँ लग रही थीं, दीवारों के जोड़ों में छोटे-छोटे कीड़ों के तरतीबवार तम्बू लग रहे थे, जिन्हें मंजु श्रौर माघव श्रपनी श्रार्थिक समस्याश्रों पर विचार करते समय श्रसामान्य एकाग्रता से छीलते रहते । इन तीन श्रपर्या्त कमरों के पीछे एक बड़ा भारी बारा था । पुराने




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