मानसिक ब्रह्मचर्य अथवा कर्मयोग | Mansik Brahmcharya Athva Karmyog

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Mansik Brahmcharya Athva Karmyog by फकीरचन्द कानोडिया - Fakirchand Kanodia

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( हुडे ) क्तन्नता श्रकाशन मानसिक न्रह्मचये अथवा कर्मयोग नामक घिषय को सन्नन्न बनाने के लिये माता-पिता की श्रोर से जो खुविधा तथा स्वत- स्त्रता मुक्े मिली है, उनका मिलना किसी भी सन्तान को दुर्लभ है । उन्होंने ४५ वर्ष तक मेरा लालन-पालन किया, २५ वर्ष तक गंभीर रोगों के आक्रमणों से मेरी रक्ता की 'और घन, वस्त्र, यान; छोषधी, चिकित्सक और शुश्रूपक नौकरों श्मादि की ओर से कभी चिंतित नहीं होने दिया। उन्होंने कभी सुझ से घनाजंन करने की मांग नहीं की । मे अपने खाने-पीने, सोने, श्रमण करने और श्रपने विषय में मग्न रहा करता था | _ जो दूसरों के लिये कुछ नही था, परन्ठु मेरे लिये सब कुछ था | मुभे न घर की-ब्यवस्था की चिन्ता थी और न-हि सामाजिक घ्ादि कार्वो से प्रयोजन था । इस प्रकार साता-पिता की छोर से मुभे पूर्ण स्वतन्त्रता तथा सुविधा मिली हुई थी । जिनकी अपार कृपा से में झपने विषय को सस्पन्त बनाकर पंथ के रूप में जनता के सन्मुख रख रहा हूँ । उनका में अत्यन्त आशभारी हूँ । जिससे मुक्त होना अत्यंत दुष्कर है। फिर भी जहाँ तक हो सके मुझे उनकी सेवा करनी चाहिए। यदि मे




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