प्रेम दर्शन | Prem Darshan
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( शेर )
शाखोंकि छुपण्डित तथा समस्त तरवोंकि ज्ञाता और व्याख्याता होकर भी
अन्तमें नारंदजी भगवानकी भक्तिका ही उपदेश करते हैं । वाल्मीकि,
व्यास, शुकदेव; प्रह्मद, ध्रुव आदि महान् महात्माओंको भगवद्भक्तिमें
गाते हैं। इतना ही नहीं, स्वयं वीणा हापमें टेकर सभी युगों और सभी
समाजोगें निर्मय और निश्चित्त हुए सदा-सर्वदा भगवान्के पवित्र
नामोंका गान करते हुए सारे विधके नर-नारियोंकों पवित्र और
मंगवन्पुखी करते रहते हैं। इन भगवान् श्रीनारदने अपने दो क्ल्पों-
के न्वर्त्रिका कुछ खर्य वर्णन किया है । भागवतर्मे उक्त प्रसंज्
बढ़ा ही छुन्दर है । अपने और पाठकोके मनोरन्नके छिये
उसका कुछ मर्म नीचे दिया जाता है ।
दिव्यदष्टिसम्पन महर्षि व्यासजीने छोगोंके कल्याणके लिये
बेदोंके चार विभाग किये । पश्चम वेदरूप नानाख्यानोंसे पूर्ण
महाभारतकी रचना की । पुराणोंका निर्माण किया । इस प्रकार संग
प्राणियोके कल्याणमें प्रदत्त होनेपर भी व्याल्मगवान्कों तृप्ति नहीं हुई,
उनके चित्तमें पूर्ण दान्ति न हुई, उन्हें अपने अन्दर कुछ कमी-सी प्रतीत
होती ही रही; तब वे कुछ उदास-से होकर सरखती नदीके तटपर
बैठकर विचारने लगे-'मैने सब कुछ किया, तथापि मुझे अपने
अन्दर कुछ अभावका-सा अनुभव क्यों हो रहा है १ क्या मैंने
भागवतधर्माका विस्तारते निरूपण नहीं किया । क्योंकि भागवत
धर्म ही परगेथर और परमहंस भक्तोंकिं प्रिय हैं । वे इस
प्रकार सोच ही रहे ये कि हरियुण गाते असन्नवदन श्रीनारदजी”--
वहाँ आ पह़ेंचे । आवमगत और कुदालसमाचार पूछने-कहनेकी
फ्
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