आबू | Aabu

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Aabu by महामहोपाध्याय राय बहादुर पंडित गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा - Mahamahopadhyaya Rai Bahadur Pandit Gaurishankar Hirachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उ 1 & इस प्रसंग पर में एक खास बात का उल्लेख करना “बावश्यक समकता हूं । ही बाबू” के मंदिरों में खास करके ' विमलवसदि* “और ' लूखुवसहि* नामक विश्व विख्यात मंदिर हैं, देखने नकी स्वास चीज उनकी कारीगरी-कोतरणी श्र खुदाई का काम है। यह कारीगरी+ भारतीय शिल्पकला के उत्कृष्ट नमूने हैं। जिसके पीछे करोड़ों रुपये इन मंदिरों के तनिर्माताओं ने व्यय किये हैं। शिल्प के ज्ञाता किया शिल्प से अझभिरुचि रखने वाले शिल्पकला की दि से इसकां निरीक्षण करें; परन्तु इस शिल्प के नमूनों ( कारीगरी ) में से इम और भी चहुतसी बातों का ज्ञान प्राप्त कर सकते डैं। उदादरणाथ--उस समय का बेप) उस समय के रीत- परिवाज, उस समय का व्यवहार झादि । देखिये-- भ 0 ७४ 2 २--' विमलवसहि' और ' लूणवसहि * के खुदाई में जैन साधुओं की सूर्तिएँ। क्या उस पर से हमें यह पता नहीं चलता है कि आाज से सातसी वर्ष के पहले भी जैन साधुओं का वेप लगभग इस समय के साधुओं के जसा ही था। देखिये मुँहपत्ति हाथ में ही है) न कि मुख पर बंधी इुई। दंडे भी उस समय के साधु अवश्य रखते थे। हां;* शाधुनिक




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