श्री आराधनासार कथाकोष प्रारम्भः | Shree Aradhanasar Kathakosh Prarambh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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द्ग्द्भा
द्ध ररू को जीतकर, मेरी बांढा सार 1
पूरे रथयात्रा करे, इसही नगर सकार ॥ ७३ ॥
इस लाधक नर कांन ६, सा काइदय ससवाल ।
तब मानव कहत कप, सुन उुन्ना सुशखान ७४
चौपाईं
सान्याखेट नगर शुभ जान । तामें पेडित है लुधघवान ॥।
इसको जीतन समरथ होय । यामे संशय नाही कोय ।७९४)॥।
सदन स॒न्दरी बच सुन तेह । कहदत भई सनये गुरु येह ॥
कोप सहित जो सप कराल । डसन दह्ेत यो तत्काल ॥७६॥।
दूर देश में गारुड होय । तो बह सर जीवें किस सोय ॥।
ऐसा कह प्रभु पूजन करी । जिन यह में परतिज्ञा घरी ।७७।
संघश्नी पापी है सोय । उसको मत बिध्वंसे कोय ॥
परबवत रथ यात्रा करूं । जिन प्रभावना बह बिस्तरूं ॥७८ा।
तो में भोजन करूं ललाम । नातर प्राण तज़ं इसठाम ॥
एसी बिध परतिज्ञा घार । कायोत्सग खडा एतहबार ॥७-॥।
भ्रीजिन श्रतिम्ा आगे सार । नसोकार शभ मंत्र उचार ॥
मेरुचूलका वत अति घीर । निश्चल ऊभी मे गंसीर ॥. ८० ॥
पीछे अध रात्रि जब गई । याके पुन्य प्रभावे सडदी ॥।
देवी चक्रेस्वरी उदार । तिस आसन कम्पो तिहबार ॥८१॥
अवध ज्ञान ते जान तरन्त । तवही आई दहपित चंत ॥।
कहत भट्ट एसे बच ताम । सदन सुन्दरा सुन झसरास नर |
तेसे.मन जिन चरन मभार । ताते किंचित भय नाहे धार ॥
होत प्रमात समय इस थान । आवेगा अकलंक महान ॥ ८ ॥ |
संघश्नी मद मर्दन करे । जैनधर्म वह विधि विस्तेरे । ।
नकनकाका शी की नाक फकेगएयं _ फ नल दर
वो
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