आप्तमीमांसा प्रवचन भाग - 5 | Aptamimansa Pravachan Bhag - 5
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
297
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पंचम भांग [ १३
जो घ्रतिमासभेद है, बहु काल्पनिक है । बस्तुत: तो बह ज्ञान लखमात्र है । यदि ऐसा
कहो हो प्रह्माईववादमें भी इस हो प्रकार्का समाधान हो जायगा । कृयोकि जिस
तरह भशिकव। दी प्रतिमासमेदकों कल्मनासे ही हो रह है भ्रतएव अल कषेपसे बच नहीं
सकते । यो श्रह्मादतवादी विधेषवादियोंकि प्रति कह रहे हैं कि इस प्रकार 6त्ताइंत
की बात सही मान लेना चाहिए ।
दवरेतराभावप्रत्ययसे ही भावस्व भावमेदकी साघनाके विपक्षमें ब्रह्म-
बादियों द्वारा यौगोके प्रत्ति कथन - इस ही प्रसपसे सम्बन्धित ब्रह्माढ तथादी
मैपाधिकोकी एक झाधकाका निराकरशा करते हुये कह रहे है कि जो सी लोग
दतरेतराभावके जनम माव धर्यात् वस्तुमें स्वभावनमेदकी सिद्धि करते हूं उनके सिद्धा-
शहमें इतरेतसामावक् विवह्प भी वेयो ने घ्रथ्याथं हो जायना वर्णादिक विकल्शोकी
तरह । भैसे कि वशों, रस घादिकका शान जो कि कस्पनासे उपाधिके वदासे शिन्न-
भिन्न भ्रकारका थो हो रहा है बह पारमाधिक नही, काल्पनिक है यह कहा ना रहा
दसीं ध्रकार जिस इतरेतरा भाव अत्यक्षके द्वारा ये मेपायिक तस्तुमें स्वभाव मेदकों
साधना करने चले हैं भावसाधनाके लिए बताया गया बह इतरेतराभाषज्ञान भी
झवबाप ब्चों म होगा ? बह भी मात्र कटपनाते ही माना नायगा । इस प्रकरणायें
भूत बात यह कही जा रहो है कि पदाधंका केवल भाव एकान्त हो माना जाद ।
झमावका निराकरण किया जाथ तो धापत्तित्राँ झनेक हैं । उसका ही समाधान होते
होते जब पहा तर भोवत भ्ायो कि इस तरह धनेकान्त भाननेपर सांश्यसिद्धान्तने
प्रकृति धौर पुरुष ये दो भूल तत्त्व भी न्ह्ी ठड़रते हैं, किन्तु सत्वकी भविदेषता होने
है दे दोनो भी एकाश्मक बम जायेंगे । और, थो सत्ताइतका प्रसंग था लायगा । इस
प्रकरण वो सुनकर सत्तादंशवादी श्क्सर पीकर धपने मिद्धार्तका समथन कर रहे
हैं, प्ौर रस समधंनवे प्रसगभे, इतरेतरा मोवके शान द्वारा थो बस्तुमे स्मभावमेद
भामने छाले हैं ऐसे नेवांवकोर प्रति कह रहे है कि इनरेगरासावका जाम भी श्रययार्थ
है, भमिद्ध है । केवल इतरेतराभावकी करूपना थी गई है ।
नयाधिको द्वारा वर्णादिज्ञानकी मावभेद«डिमे व्यभिचारिता व इस
रेतरामावजशानकी धव्यभिचारिता सिद्ध करनेका प्रयास शौर सत्ता तवादी
डरा उसका परिहार--भझब यहाँ मेंपाधिक कहते है कि वर्शादिक्का शान तो माद
में, बह्तुम सब मावभेदके बिना मी हो जाता है। तब वर्शादिक दित्ह्पको यग्त अड
करने जो इतरेतरामावकों थो सिवा बनाया जा रही सो उदाहरण ब्भियारों है।
बशादिवक। शाम हो भष्याय है बयोकि इस प्रमगत् थो शमुसाम बनाया उसें
बरटिविका ज्ञान होगा पह हो हुआ शापन पौर बल्तुमें सवमावनेद कर देना यह
रचा चारण 1 हो बटादिश्गा भिप्-जिय् व! रवे शाम हो भोग रहा है फिर भो अपन
पब्वरॉलिश महीं कर भा 1 भतदूब ये बर्णादिस्थान थपयर्ष हैं दिग्या ६
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