हिंदी महाजनी का नया बहीखाता | Hindi Mahajani Ka Naya Bahikhata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
460
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(रेट 2)
भाषा में न होकर दमारे देश की भाषाओं में ही हो । इसके
अतिरिक्त देश के अनेकों दोनदहार नवयुवक और नवयुवतियां
उच्चतम व्यापारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिये प्रति वष॑ बाहर
विदेशों में भेजे जायें । इस कठिन काय्य के करने के लिये अधिक
_ धन और देख-भाल करने की आवश्यकता पड़ेगी, जिसके छिये
हमारा व्यापारी समाज और गव्नेमेट दोनों ही देश के कल्याण
और उत्यान के लिये मिल जुल कर प्रबन्च कर सकते हैं । जापान
ने, जो राज से साठ सत्तर चष पहले बड़ा निधन देश थी; इसी
प्रकार व्यापार सें उन्तति करके आज संसार में खब नाम पाया
है । यदि भरपूर प्रयत्न किया जाय तो जो आज हमारे व्यापा-
रिक शिक्षा के थोड़े से विद्यार्थी हैं, वे हो कछ निस्सन्देद अवश्य
बच्छे और चतुर नागरिक बन कर भारतवर्ष, की काया पलट
कर सकते हैं ।
घन को महिमा और वतंप्ान समय में: अधिक
धन की आवश्यक्ता:--घन की सहिसा भूमण्डछ पर सदा
से रही है, श्औौर सदा रहेगी । कहा भी गया है कि--““यस्यास्ति
वितं स नरः कुलीनः स पंडित: स॒श्रविवान् शुणज्ञ: । स एव
वक्ता स च दशनीय: सर्वे छुणा: काव्स्चतसाश्रयन्ति” ॥ अथोत्ू
जिसके पास धन है वहीं उच्च कुल बाला दे, वहीं विद्वान ओर
चेदों का ज्ञाता है; वहीं गुणवान श्रौर वक्ता है, और वहीं दृशन
करने योग्य है; यथाथे में घन के अन्दर सारे ही गुण हैं ।
यह बात सत्य है कि प्राची ससय में घन की छावश्यकता
नहीं होती थी, कारण यह है कि पदले मनुष्य साधारण जीवन
(ू जिधएफ० प्राण क्ार्ठ फंड शिफंप्ाद्या ) व्यतीत करते थे,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...