हिंदी महाजनी का नया बहीखाता | Hindi Mahajani Ka Naya Bahikhata

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Hindi Mahajani Ka Naya Bahikhata by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(रेट 2) भाषा में न होकर दमारे देश की भाषाओं में ही हो । इसके अतिरिक्त देश के अनेकों दोनदहार नवयुवक और नवयुवतियां उच्चतम व्यापारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिये प्रति वष॑ बाहर विदेशों में भेजे जायें । इस कठिन काय्य के करने के लिये अधिक _ धन और देख-भाल करने की आवश्यकता पड़ेगी, जिसके छिये हमारा व्यापारी समाज और गव्नेमेट दोनों ही देश के कल्याण और उत्यान के लिये मिल जुल कर प्रबन्च कर सकते हैं । जापान ने, जो राज से साठ सत्तर चष पहले बड़ा निधन देश थी; इसी प्रकार व्यापार सें उन्तति करके आज संसार में खब नाम पाया है । यदि भरपूर प्रयत्न किया जाय तो जो आज हमारे व्यापा- रिक शिक्षा के थोड़े से विद्यार्थी हैं, वे हो कछ निस्सन्देद अवश्य बच्छे और चतुर नागरिक बन कर भारतवर्ष, की काया पलट कर सकते हैं । घन को महिमा और वतंप्ान समय में: अधिक धन की आवश्यक्ता:--घन की सहिसा भूमण्डछ पर सदा से रही है, श्औौर सदा रहेगी । कहा भी गया है कि--““यस्यास्ति वितं स नरः कुलीनः स पंडित: स॒श्रविवान्‌ शुणज्ञ: । स एव वक्ता स च दशनीय: सर्वे छुणा: काव्स्चतसाश्रयन्ति” ॥ अथोत्‌ू जिसके पास धन है वहीं उच्च कुल बाला दे, वहीं विद्वान ओर चेदों का ज्ञाता है; वहीं गुणवान श्रौर वक्ता है, और वहीं दृशन करने योग्य है; यथाथे में घन के अन्दर सारे ही गुण हैं । यह बात सत्य है कि प्राची ससय में घन की छावश्यकता नहीं होती थी, कारण यह है कि पदले मनुष्य साधारण जीवन (ू जिधएफ० प्राण क्ार्ठ फंड शिफंप्ाद्या ) व्यतीत करते थे,




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