राजकोट के व्याख्यान | Rajakot Ke Vyakhyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : राजकोट के व्याख्यान  - Rajakot Ke Vyakhyan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हीरालाल जैन - Heeralal Jain

Add Infomation AboutHeeralal Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
की राजकोट के व्याख्यान [३१३ रहम नहीं दि. मांहे तो दुनिया छोड़ होना फश्ीर तू । ३1 कि ७, 0 ७, द च्, च्क्‌ थ याद इलाही जो कोई करे तो तू उप्तके चरणों को छू ॥ यह फकीर या साघु का लक्षण है । शब्द दोनों वहुत छोटे सह» [ ह* ८७, स् ९ है किन्तु इनमे गंभीर अर्थ छिपा हुआ है। फडीर शब्द उद के चार अक्षरों से वना है। उन चारो का अलग २ अर्थ ऊपर की कविता में बताया गया है । संस्कृत भाषा मे इस प्रकार अक्षरों के अर्थ बताने को पद भंजन सिसुक्ति कहा जाता है । फकीर शब्द में पहला अच्षर फे है । फे का अर्थ है, कि फकीर ! तेरे में फिक्र न होना चारिये । जो फिक्र या चिन्ता करता हे चहद क्या फकीर है ! फ़िकर सभी को खात हे फ़िकर सभी का पीर | फिकर का जो फाका करे ताकों नाम फ़क्ीर ॥ चिन्ता और च्विता दोनों समान शुणुवाली हैं । चिता मरे हुए को जलाती है और चिन्ता जिन्‍्दे सनुष्य को । बस यही दोनों में अंतर है । वाकी मनुष्य को जलाने का काम दोनों समान रूप से करती है । चिन्ता में घुन् घुल कर मनुष्य सूखकर कांटा बन जाता है | यद्‌ चिन्ता सब को खा जाती है । किन्तु साघु या फहीर ऐसे उस्ताद है जो चिन्ता को भी खा जाते है | उनके सिकट चिन्ता फटकने नहीं पाती । फकीर शब्द में दूसरा हरुफ काफहे। काफ का अर्थ कुदरत होता है । कीड़ो सकोड़ो मे थी कुदरत का नियम देखा जाता है तो कया सनुष्य सें वह चिस्म नही है ? सनुष्प में कुदरत (प्रकृति)




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now