राजकोट के व्याख्यान | Rajakot Ke Vyakhyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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राजकोट के व्याख्यान [३१३
रहम नहीं दि. मांहे तो दुनिया छोड़ होना फश्ीर तू ।
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याद इलाही जो कोई करे तो तू उप्तके चरणों को छू ॥
यह फकीर या साघु का लक्षण है । शब्द दोनों वहुत छोटे
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है किन्तु इनमे गंभीर अर्थ छिपा हुआ है। फडीर शब्द उद के
चार अक्षरों से वना है। उन चारो का अलग २ अर्थ ऊपर की
कविता में बताया गया है । संस्कृत भाषा मे इस प्रकार अक्षरों
के अर्थ बताने को पद भंजन सिसुक्ति कहा जाता है ।
फकीर शब्द में पहला अच्षर फे है । फे का अर्थ है, कि
फकीर ! तेरे में फिक्र न होना चारिये । जो फिक्र या चिन्ता करता
हे चहद क्या फकीर है !
फ़िकर सभी को खात हे फ़िकर सभी का पीर |
फिकर का जो फाका करे ताकों नाम फ़क्ीर ॥
चिन्ता और च्विता दोनों समान शुणुवाली हैं । चिता
मरे हुए को जलाती है और चिन्ता जिन््दे सनुष्य को । बस
यही दोनों में अंतर है । वाकी मनुष्य को जलाने का काम दोनों
समान रूप से करती है । चिन्ता में घुन् घुल कर मनुष्य सूखकर
कांटा बन जाता है | यद् चिन्ता सब को खा जाती है । किन्तु
साघु या फहीर ऐसे उस्ताद है जो चिन्ता को भी खा जाते है |
उनके सिकट चिन्ता फटकने नहीं पाती ।
फकीर शब्द में दूसरा हरुफ काफहे। काफ का अर्थ कुदरत
होता है । कीड़ो सकोड़ो मे थी कुदरत का नियम देखा जाता है
तो कया सनुष्य सें वह चिस्म नही है ? सनुष्प में कुदरत (प्रकृति)
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