नीतिशास्त्र की रूपरेखा | Neetishastra Ki Rooprekha

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Neetishastra Ki Rooprekha by विष्णुदेव नारायण ओझा - Vishnudev Narayan Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १ कुछ लोगोको श्रापचि है। दम देख चुके हैं कि नीतिशास्त्र का सम्बन्ध गच्छिक क्रिया” से है । “ऐच्छिक क्रिया” का श्रथ है कि यह हमारी इच्छा पर निर्मर हो । चू कि इसका सम्बन्ध इच्छा से है, इसलिए, नीति-शास्त्र वेहिसावी (ए०्गेठणाकणह) है । दम निर्चयाप्मक दाग से यह मविष्य-वाणी नहीं कर सकते कि श्रमुक परिस्थिति में अमुक श्रादमी ऐसा करेगा । उस कार्य का होना उस व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर है । उसके सामने ब्हुत-से विकल्प (8181 0&9४68) होते हैं, जिनमे किसी एक को वह नुन सकता है । इसके विपरीत विज्ञान की विशेषता है कि इसमें भविष्यवाणी की णु' जाइश है । बल्कि यहीँ इसकी विशेषता है । खगोल-शास्त्र (87070) में जब यही चमता आई कि वह श्रहणों की भ'वष्यवाणी कर सकता था, तभी उसे विज्ञान माना गया । अतः इस भविष्यवाणी के शमाव मे नीतिशास्त्र विज्ञान नहीं । लेकिन यह आपत्ति निमूल है ।. पहली वात है हमारी इच्छात्रो को बिल्कुल बेहिसाब मान लेना ही ठीक नहीं । हमारी जितनी भी क्रियाएं हैं, वे सभी श्रन्ततोगत्वा प्राकृतिक कारणों के फलस्वरूप हैं । हम उनका ठीक- ठीक पता नहीं लगा सकते । इसका कारण है कि मनुष्यों की मानसिक क्रिया- प्रतिक्रिया के बारे में इमारे शान परिपक नहीं हैं । मनुष्य का विकास सबसे छन्त में हुआ है; इसलिए; उसकी प्रकृति भी जटिलतम है । मनोवेज्ञानिकों के प्रयास से एक ऐसा दिन भी आआ सकता है, जब हम श्रइण की तरह यह भीं दावे के साथ कद सकेंगे कि कौन मनुष्य किस पर्रित्थितिं मे क्या काम रेगा । अतः यह शार्पाच सही नही । दूसरी बात है कि इसके ्रर्तिरिक्त विशेन का एक दूरुरा अथ॑ भी होतत है | विस्तृत अथ में विज्ञान का मानी है शान या सत्य की पाति के लिए, किसी भी प्रकार का क्रमिक द्ध्ययन । यहाँ यह एक विधि दौसा है । यह एक प्रकार की शक्ति है, एक तरीका है । नीति-शास्त्र का उद्द रय है--मनुप्य की आधारभूत समस्याओं का ज्ञान प्राप्त करना । इसके लिए यह इससे संबंधित सभी चीजों में सम्बन्ध स्थापित करते हुए, उनका क्रमिक शध्ययन करता है । अतः नीतिशास्र विशान है ।




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