आलोचना के सिद्धांत | Aalochana Ke Siddhant
श्रेणी : आलोचनात्मक / Critique, साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८] [ आलोनना के मिद्धांत
मे इस प्रकार का इतिहास वहाँ की परिश्थितियोां ये दनुसार कुछ श्दल चल
के साथ इसी क्रम के ्रन्तर्गत चला दै । इंगलड अमेरिका श्रीर रूम के
साहित्य पर जन हम दृष्टि डालते हैं तो हमारे सामने ऊपर दी गई व्यक्ति
गत साहित्य आर सामाजिक साहित्य की रुपरेखा श्धिक नि हुए सय
में सामने आ जाती है । द्राज के युग में रस का सादित्यिक प्राचीन रूद्टि-
वादी सामाजिक कथघरे को छिन्न सिन्न करने में अधिक जोरदार चोद लगाने
में सफल हुआ है । जिसमें जितनी अधिक विनाश की शक्ति हू उतना दो
शीघ्र वह निर्माण भी कर सकता है । कल का श्रफ़ीम खाने चाला. चीन
आज अ्मेरीका से टक्कर लेने की सामथ्य. द्पने में रखता है ।
जिस प्रकार व्यक्ति प्रगतिशील है और निरंतर प्रगति की आओर द्रग्रसर
है उसी प्रकार समाज भी ्पना पग दाग ही ले जारहा है। व्यक्ति दी
समाज को बल देता है श्रोर समाज का बल भी व्यक्ति के दी ऊपर
आधारित है क्यों उन्दीं व्यक्तियों के समुदाय का नाम तो समाज पड़ा है|
राज के युग में व्यक्ति भी समाज का एक शरण हे श्रीर उसकी पुष्टि
में समाज की दृदुता वततमान है। व्यक्ति का विचार व्यक्तिगत न होकर
सामाजिक रूपरेखा का दही एक अंग होना चाहिए। ऐसा न होने से
प्रगति का द्वार बन्द हो जाएगा श्र मानव का गे बढ़ता हुआ पग
जकड़कर समाज की श्राशा को, समाज के स्वप्नों को, समाज के सं कत्पों
को अंघकारमय भविष्य के गर्त में देश देगा | इस प्रकार व्यक्ति समाज
का प्रतीक है श्रीर समाज व्यक्ति का सामूहिक रूप, जिनके इतिहास की
कलात्मक श्रभिव्यक्ति को दम साहित्य के नाम से पुकारते हैं
साहित्यकार एक सामाजिक व्यक्ति है, संसार से तटस्थ रहकर कहीं
साहित्य छोर जंगल में विचरने वाला प्राणी नहीं, जिसका कि, समाज
समाज का के रहन-सइन खान-पान, रीति-रिवाज, ्राचार-विद्यार,
सम्बन्ध. घर्म-कर्म, पारस्परिक सम्बन्ध श्र विछोड, मोद-ममता,
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