गोमांतक | Gomantak

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Gomantak by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुर्वाद्ध शुभ के प्रकाश में उसने क्या देखा ! बेहोश माधव के स्थान पर सैनिक वेहोश पड़ा है घर माघव-समेत सारे वन्दी गायब हैं । “धोखा, धोखा ! झरे देखते क्या हो ? पकड़ो, दौड़ो -! ” झ्न्तुनिया क्रोध से चिढ़कर चिल्लाने लगा । जो कोई सामने झ्राया उसको डाँटने लगा । क्या हुमा है, यह समभने में लोगों को देरी न लगी । धीरे-धीरे उनके मन पर भय का प्रमाव भी कम होने लगा श्रौर वालु का वाँध तोड़कर जैसे पानी का प्रभाव वह निकलता है, उसी प्रकार सैनिकों का घेरा तोड़कर वह जन-प्रवाह देखते-ही-देखते घरों की श्रोर बढ़ने लगा । अन्वुनिया ने स्थिति पहचान ली । पूँछ पर आघात हुए साँप की तरह मन में वदले का भाव रखकर वह पीछे हटा । गाँव के जिन प्रमुखों को फ्| |) के पकड़कर लाया था, उन्हें वाँध कर श्रपने सैनिकों के साथ वह चौकी ' में झाशय के लिए चला गया । ः दातु-सैनिक थे ही कितने ? केवल तीस । उनके रहम पर उन ग्राम-प्रमुखों को छोड़कर वे तीन सौ ग्रामीण जान वचाकर भाग गए। वह काली रात ! उस भीषण रात्रि में उन वंदियों को घोर यातनाएँ दी जाती रहीं । हंटरों की मार श्रौर एक हंटर के टूटने के * वाद दूसरा, इस प्रकार प्रहार जारी रहे । कई हंटर टूट गये, किन्तु उन श्रत्याचारियों का मारना नहीं रुका । हंटर चल रहे थे, हृदय- विदारक चीत्कारें निकल रही थीं श्रौर खून के फव्वारे उठ रहे थे । ऐसी वह भीषण रात्रि । ऐसी वह क्रूर और काली रात्रि । ऐसी वह हिंसक रात्रि । वे अ्रमागी श्रात॑-चीत्कारें श्रौर उन हिंसक नर-पथुत्मों की गर्जनायें । रक्त से लथ-पथ वह रात्रि । नहीं, नहीं, एक चिढ़ी हुई जहरीली नागिन ही मानों उन ग्रामवासियों को डस रही थी । है प्रभु ! अझभी-म्रभी सायंकाल में नित्य की भाँति तुम्हारा स्मरण इत लोगों ने कियां और उसके तुरन्त वाद ही इनके भाग्य में यह भयं- कर रात्रि आई । क्या भक्तिमाव से तुम्हारी प्रार्थना करना भी पाए है ? अपराध है ? ी गाँव के कुछ ही दूर वने मठ के चारों श्र नीरव शान्ति बस रही थी--तृप्त और शान्त । मठ में कोमल गीतों का शीतल स्रोत बह रहा




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