साहस और खोज की कहानियाँ | Sahas Aur Khoj Ki Kahaniyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कोलम्बस श्श्
उठा--'प्रथ्वी, प्रथ्वी' । मल्लाहों के मुख पर हुपे की रेखा दौड़ गई ।
सच मल्लाद नत-मस्तक होकर इश्वर का धन्यवाद करने लगे ।
दूसरे दिन प्रातःकाल होते ही कोहरे के साथ-साथ पिंजन का
चष्रि-्रम भी नष्ट हो गया । इधर-उधर देखने पर कहीं स्थल का
पता नहीं चलता था । अबकी चार दुःख तथा असंतोष की
सीसा और भी चढ़ गई । जब चारों 'झोर दृष्टि दोड़ाते थे तो
ऐसा प्रतीत होता था कि न कहीं द्वीप है और न कहीं प्रथ्वी,
न सोना है और न मोती । उनकी जगदद सामने मौत ही
दिखाई दें रही थी । अब सबने निश्चय कर लिया कि हम सच
केचल भ्रम में पड़े हुए हैं, अपने निर्दिप्ट उद्देश्य पर पहुंचना
अत्यन्त कठिन है । हमारी प्राणाहुति अवश्य दी जायगी । इस
प्रकार के विचार-श्रमावतें में वे चक्कर लगाने लगे । कपटी, नीच,
देशारि कोलम्बस ! तूने यह क्या किया ? तुम किस जन्म की
शत्रुता निकालना चाहते हो ? हमने तुम्हारा क्या अपराध किया
था जिसका तुम यह घोर दण्ड देना चाहते हो ? इस प्रकार
फेवल बड़बड़ाते ही न थे, प्रत्युत कोलम्बस का सिर काटने पर
उतारू हो रहे थे । नीतिनिपुण तथा कालाभिज्ञ होने के कारण :
कोलम्बस ने किसी को शान्ति से, किसी को दमन से तथा
कइयों को भरसंना से शान्त किया । अपने साथियों से प्राथना
की कि कृपा करके मुझे तीन दिन का अवसर और दो । यदि
इतने समय में हम किसी तट तक न पहुंच सके तो तुम जो
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