आस्था के बन्ध | Aastha Ke Bandh

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Aastha Ke Bandh by भवदत्त महता - Bhavdatt Mahata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शेर को छेड़ दिया या साप की यावी मं हाथ डाल दिया। या यू कह कि मधुमक्खी के छत्त को छेड दिया। यह सब तो आग पता चलेगा हो। यू कि जन्म भूमि के मोह मे याजना तैयार को आवरा वाध को। पता नहीं किस खोट मृहूर्त मे चनी याजना! यहा से गए राजधानी और चहा से लौटे बरग लिफाफे की तरह । कर्मवीर अभियता थार-यार रिवाइन्ड आकड़े तैयार करते और भेजते सिचाई मत्रालय। राजधानी वाले भी बार-बार लौयते-लौटात हार गए। आखिर उन्होंने सोचा कया नहीं, वावल अभियन्ताआ का उपलती कढ़ाही म हाथ डालने ही दिया जाय। भागे इसका फल। चय इसका 'कडवा स्वाद। एक दिन आखिर योजना म्वाकृत हाकर आ ही गई। मगर डिपार्टमेन्ट की रेग्यूलर स्कीम में नहां आई। आई केवल अकाल राहत कार्य म हो पूरा करने की गारण्टी के साधा चेलैंन था अभियता के लिए पर उसका जन्मभूमि प्रम भी कम म था। बाधाओं पर याधाए और परीक्षाए। मगर धन्य है अभियता हार नहीं मानी। इस तरह शुरू हुआ आवरा चाध, अकाल राहत कार्य में। गाव मे जब लोगा को पता चला तो सुशिया का पार नहीं था। अब उमके मवेशी मई-जून की चिलचिलाता धूप मं प्यास के मार हाफंग नहीं। बाध म पानी भरा रहंगा ता गाव के कुआ का जलस्तर बढ़ा रहगा गाव की आरता का दूर-दूर से पानी नहीं लाना पड़ेगा। घर-आगन म तुलसी का पौधा युड़मुड़ाकर सूखगा नही! भेड़ा के रेवड़ प्यास के मार मिमियाएंगे नहीं। टिटहरी को अड देने के लिए भटकना महीं पड़गा। चाध के किनार उसके नवजात यच्चे फुदकते रहंगे। दास्ती के लिहान मे और कुछ कर गुमरने वी चाह म सुधाकर ने अपने मित्र कनिष्ठ अभियंता की थात मान ली, ओवरा बाध पर दंखरख करने क॑ लिए। उसके साथ कुछ लालच और भी जुड़े थे। उसका अपना ननिहाल भी गोगुन्दा ही था। इसी 'बहामे इस धरती का कुछ कर्ज वह भी चुका देगा। उसके साथ आदिवासी सस्कृति 'को निकट से देखने-समझन की 'वरसा पुरानी साध भी पूरी हो रही थी। उसने सोचा इसी बहाने कुछ माह इन लागा के साथ रह पाएगा। उस दिन दाना मित्रां के वाद- विवाद मे चुछ बात ही ऐसी उठ गई। दिनश न कहा-- “हा हा जानता हु, हम लाग देश आर समाज-सेवा के नाम पर भाषण तो बहुत अच्छे दे सकते हैं, मगर जब वास्तव मे कुछ करने का मौका आता है तो हम मुह छिपाते फिरते हैं।”” सुधाकर न तमतमाकर कहा-- “तुम कहना कया चाहत हो ? मेरी बात॑ कोई बकवास हैं ? प्रेकटीकली सभव नहा हैं > दिनेश ने कहा-- “हो सकता है सभव हा मगर क्या तुम खुद काम करने को तैयार हो ? मैं देता हू तुम्हे एक प्रोनेकट। आज और अभी। जाआंग ?”* सुधाकर ने पूछा--“'कहा जाना होगा ? करना क्या है 2 दिनेश ने स्पष्ट किया-- तुम्हारे अपने ननिहाल मे। गोगुन्दा तहसील के गाव दो आस्था के बन्ध/ 15




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