महान व्यक्तित्व | Mahan Vyaktitv
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कोई सन्देह नहीं है कि आपके उदाहरण का स्थायी प्रभाव पड़ेगा । आपके प्रयास
कभी व्यर्थ नहीं जायेंगे । वे अवश्य ही लाभदायक सिद्ध होंगे । आपने जो कष्ट
झेले हैं वे राष्ट्र को अवश्य विजय की ओर ले जायेंगे।”
उननीसवें दशक में कांग्रेस के अधिवेशन मे तिलक एक असाधारण नेता के
रूप में सामने आये ।
सन् 1905 में बनारस अधिवेशन में भाग लेते हुए गांधीजी ने कहा,
“फिरोजशाह मेहता मुझे हिमालय जैसे लगते हैं और लोकमान्य सागर समान,
किन्तु गोखले गंगा जैसे थे।”
राष्ट्रीयता का उदय
सन् 1905 में हुए बंगाल विभाजन ने देश में अस्तव्यस्तता उत्पन्न कर दी ।
विभाजन ने लोगों को एक कर दिया । ब्रिटिश सरकार के निर्णय का विरोध करने
के लिए जब वे लोग काले झण्डों और वन्दे मातरम् के नारे लगाने लगे तो
राष्ट्रीयता की भावना और गहन हो गई। विभाजन, ब्रिटिश सरकार की नीति
थी, विभाजित करो और शासन करो का यह एक उदाहरण था क्योंकि विभाजन
बंगाल के विभिन्न भागों में रहनेवाले हिन्दू-मुस्लिम की अधिकतम संख्या पर
आधारित था। यह योजना खतरे से भरी हुई थी।
बंगाल में विपिनचन्द्र पाल और अरविन्द घोष, पंजाब में लाला लाजपत राय
और महाराष्ट्र में तिलक ने अपनी आवाज उठाई। उन्होंने लोगों को विदेशी
वस्तुओं का बहिष्कार करने की कहा ।
जनसमुदाय को यह विचार पसन्द आया । अपने आन्दोलन में उन्होंने विभाजन
का सक्रियता से विरोध किया । कांग्रेस में, फिरोजशाह मेहता, सुरेन्द्रगाथ बैनर्जी
और गोखले जैसे नरम दल के लोग वैधानिक आन्दोलन के सिद्धांत पर अड़े
हुए थे। वे संवैधानिक 'तरीकों द्वारा विरोध करने में विश्वास करते थे। वे
बहिष्कार को अवैध और उम्रवादी समझते थे।
तिलक का मार्ग उम्रवादी था | वह मानते थे कि सरकार को हिलाने के लिए,
सख्त कदम उठाने चाहिए। “...राजनैतिक अधिकारों के लिए संघर्ष' करना
चाहिए। नरम दलीय सोचते हैं कि वे इसे अनुनय द्वारा प्राप्त कर सकते हैं।
हमें लगता है कि उसे सिर्फ सशक्त दवाब द्वारा ही पाया जा सकता है।”
यद्यपि नरम दल के लोग तिलक के उम्रवादी विचारों से सहमत नहीं थे
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