रोजनामचा | Rozanamcha

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Rozanamcha by इंदु जैन - Indu Jainपुष्प धन्वा - Pushp Dhanva

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पुष्प धन्वा - Pushp Dhanva

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अबलील ता : एक प्रदन सेंसर : समाधान ? हमारी जागरण की अवस्था अधिकाश अतरग विचारों दे सोने की अवस्था गोत्ती है। जव हम सी जाते है तभी वे सव आराम से हमारे भीतर अगडाई ले पति हं। ममोर्वज्ञातिकों का कहना है कि रात को सेंसर (सतरी) सो जाता है बोर चेतन-अवचेतन के वीच वा द्वार बे-रोकटोव पार किया जा सर्वता है । इसीलिए तय प्रकार के विचार पूर्ण स्वतन्त्रता से मन की हर तह पर विचरने लगते हैं । रोम में ईसा से ४४३ बे पु दो मजिस्ट्रेट हुआ करते थे, जो “सेंसर' कहलाते थे ! प्रारभ मे तो इनका काम जनगणना करना तथा इसका लेखा तैयार करना था कि किस नागरिक का राज्य के भीतर कया कर्तव्य है किन्तु धीरे-धीरे बे समाज की नैतिकता के निर्वाचन और रखवाले वन गए । आज की दुनिया तक पहुंचते- पहुंचते हमने इस रखवाले के कई बदलते रूप देवे हैं । इसने मार्टित लूयर के क्राति- कारी विचारों का दम घोटना चाहा, कवि बायरन को देश निवाला दिया, ऑस्कर चाइल्ड को बठघरे में खड़ा कर दिया और विश्व के हर बड़े नगर वी रगीन रातों को पुलिस की सीटियो से गुजाया । धर्म, राजनीति, प्रणय--सभी दिशाओं में चाबुक घुमाता यह थभी वाणी पर टूटता है, कभी अक्षर पर, कभी चित्र पर तो कभी चलचित्र पर । माइकल स्कॉट को भारत से खदेड दिया गया, अग्रेज थासकों ने मैथितीशरण गुप्त की “भारत भारती' को तराश दिया । स्वतन्त्रता की सीमा के सदर मे एक देश से दूसरे. देश में विपमता की साना आशचयंघर्वित कर देवे वाली है। एक ही आकाश मै नीचे अमेरिकी मच पर नग्न- नुत्य होता है, इग्लेड वी युवा सुर्दरिया पारदर्सी कपडे पहनवर सडकों पर धूमती हैं भर इधर भारत अभी अश्लील पोस्टर युद्ध में लगा है। इतनी विपमता क्यो कारण स्पष्ट है कि 'अश्लील' की एक सरल, सर्वेमान्य, छोटी सी परिभाषा आज 'रोजनामचा / १४५




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