विचार और कर्त्तव्य | Vichar Aur Karttavya

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Vichar Aur Karttavya by प्रहलादराय व्यास - Prahaladray Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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होन भावना [11 एवं उत्माहू की मदद से ऐसी मजबूती से किले यंदी करदें कि जिससे हीन भावना का छोटा ग्रे भी उसमें प्रवेश न कर पावे । महान दायर इकबाल ने होन भावना से ग्रसित मानव को कककोरते हुए कहा है खुदी को कर वुलन्द इतना, कि हर तहरीर से पहले । खुदा वन्दे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है । तात्पर्य पह है कि हमें होन विचार-हीन भावना को हुदय से समूल उखाड़ फेंकना है श्रौर उसके स्यान पर शुद्ध पवित्र उत्साहित सुविचारी बनना हमारा कत्तेंब्य है । हीन भावना श्रासुरी पवपित को नप्ट करने के लिए 8४, “राम, हु श्रल्लाह इ” “झामिन” अपने श्रपने धर्मानुसार जपना हू श्ौर यह विचारना हे कि हम श्रपनी दृष्टि में सदेव श्रपना भव्य चित्र बनायें । श्रपने को साहसी महत्वाकांक्षी श्रौर दूसरों के काम झाने वाला व्यविति समझें । श्रपना दूपित विकृत पहलू एक पल के लिए भी नजंर के सामने न श्रामे दें । 'इसका यह तात्पयें नहीं कि हम शभ्रपना श्रात्म निरीक्षण न करें श्रपितु श्रारम- निरीक्षण कर हीन भावना को नप्ट कर हमारे भीतर की चिदुश्वक्ति जो एक महान शक्ति है जागृत करें ग्रौर उसका झोभास प्राप्त करें । हम श्रव तक जो कुछ थे, बहू गौणा बन गया है ्ौर श्रागे जो हम बनना 'चाहते है वही लक्ष्य हमारे जीवन का लक्ष्य बने ! प्रत्येक दिन हमारे समक्ष नित्य नूतन स्वच्छ सुम्दर संगमरमर की दिला सददश श्ाता है । चाहें तो हम उसमें से नयनाभिराम मूर्ति तरादा ले श्रोर चाहे तो उसे खण्ड-खण्ड करदें । संगमरमर प्रात:क्ञाल हमारी प्रतीक्षा करता है । यह निणंय सिफ॑ हमें करना कि उसका क्या धनायेंगे ? बयोकि विचार से 'प्रपना भला बुरा भविष्य हम बना लेते हैं विचार ही देव है तो फिर हीन भावना को त्याग कर उस दैव का नियमन करना मानव का परम कत्तव्य है।




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