सत्यार्थप्रकाश: | Satyaarthaprakaash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
399
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about दयानंद सरस्वती - Dayanand Saraswati
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सत्याधंप्रकाश:
(भ्रोरेमु) जिसका नाम है श्ौर जो कभी नष्ट नहीं होता उसी की उपासना करनी
योग्य है श्रन्य की नहीं ॥। २॥ ः
(श्रोमित्येत ०) सब वेदार्दि शास्त्रों में परमेश्वर का प्रधान श्रौर निज नाम (श्रोरेसु)
को कहा है, भ्रन्य सब गौशिक नाम है ॥ ३ ॥
(सर्वे वेदा०) क्योंकि सब वेद, सब धर्मानुष्ठानरूप तपश्चरण जिसका कथन और मान्य
करते श्रौर जिसकी प्राप्ति की इच्छा करके ब्रह्मच्य्यश्रिम करते है उसका नाम 'ओम्' है ॥। '४॥।
(प्रद्ासिता०) जो सब को शिक्षा देनेहारा, सूक्ष्म से सुक्ष्म, स्वप्रकाशस्वरूप, समाधिस्थ
बुद्धि से जानने योग्य है उसको परम पुरुष जानना चाहिये ॥। ४ ॥।
गौर स्वप्रकाश होने से “श्रर्नि' विज्ञानस्वरूप होने से “मनु सब का पालन करने से
'प्रजापति' श्रौर पररमैश्वय्यंवान् होने से 'इन्द्' सब का जीवनसूल होने से 'प्राण' श्रौर निरन्तर
व्यापक होने ने परमेश्वर का नाम 'ब्रह्मा' है ॥ ६ ॥
(स ब्रह्मा स विष गुर ) सब जगत के बनाने से “त्रह्मा' सर्वेत्र व्यापक होने से 'विष्ण'
दुष्टों को दण्ड देके रुलाने से “रुद्र' मज़लमय श्रौर सब का कल्याणुकर्ता होने से “'शिव' 'यः
सर्वमदनुते न क्षरति न विनद्यति तदक्षरमु 'य: स्वयं राजते से स्वराट' 'योधगर्तिरिव काल:
कलयिता प्रलयकरत्ता स कालार्निरीश्वरः' । (श्रक्षर) जो. सर्वत्र व्याप्त श्रविनाशी (स्वराट्)
स्वयं प्रकाशस्वरूप आर (कालाग्नि०) प्रलय में सब का काल श्रौर काल का भी काल है
इसलिये परमेश्वर का नाम कालाग्नि है ॥ ७ ॥। न
(इत्द्रं मित्रं) जो एक श्रद्धितीय सत्यब्रह्म वस्तु है उसी के इच्द्रादि सब नाम हैं ।
'युषु शुद्धषु पदार्थषु भवो दिव्य: 'शोभनानि पर्णानि पालनानि पूर्णानि कर्माणि वा यस्य सः'
यो युर्वात्मा स गरुत्मानू” 'यो मातरिखश्वा वायुरिव बलवान स मातरिश्वा' (दिव्य) जो प्रकू-
त्यादि दिव्य पदार्थों मे व्याप्त (सुपण) जिसके उत्तम पालन श्ौर पूर्ण कम है (गरुत्मानु / *
जिसका म्रात्मा भ्र्थात् स्वरूप महान है जो वायु के समान भ्रनन्त बलवानु है इसलिये परमात्मा
के दिव्य, सुपण, गरुत्मानु और मातरिश्त्रा ये नाम हैं । शेष नामों का झथें श्रागे लिखेंगे ॥। ८ ॥
(भूमिरसि०) 'भवस्ति भूतानि यस्यां सा भुमि:' जिसमें सब भूत प्रारणि होते हैं इस-
लिये ईश्वर का नाम “भूमि' है । दोष नामों का अर्थ श्रागे लिखेंगे ।। € ॥।
(इत्द्रो मह्ना०) इस मन्त्र में इन्द्र परमेश्वर ही का जाम है इसलिये यह प्रमाण
लिखा है ॥ १० ॥ है
(प्राणाय) जैसे प्राण के वश सब शरीर, इच्द्ियां होती हैं वेसे परमेश्वर के वश में
सब जगत रहता है ॥ ११ ॥ ः
इत्यादि' प्रमाणों के ठीक-ठीक अर्थों के जानने से इन भामों करके परमेश्वर ही का
ग्रहण होता है। क्योंकि 'ओोरस' श्रौर अग्यादि नामों के मुख्य झ्थे से परमेश्वर ही का
ग्रहण होता है । जैसा कि व्याकरण, निरुक्त, ब्राह्मण, सुन्नादि ऋषि मुनियों के व्याख्यानों से
परमेश्वर का ग्रहण देखने में श्राता है वैसा प्रहण करना सबको योग्य है परन्तु '्रोशेमु यह
तो केवल परमात्मा ही का नाम है भ्ौर झग्नि झ्रादि नामों से परमेश्वर के ग्रहण में प्रकरण
श्ौर विदेषण नियमकारक हैं । इससे क्या सिद्ध हुमा कि जहाँ-जहाँ स्तुति, प्रार्थना, उपासना,
सबंज्ञ, व्यापक, शुद्ध, सनातन आर सृष्टिकत्ता आदि विशेषण लिखे है वह्दी-वही इन नामों से
परमेश्वर का ग्रहण होता है भ्रौर जहाँ-जहाँ ऐसे प्रकरण हैं कि :-
ततों विराडंजायत विराजों शरधि पुरुष: । श्रोन्नादवायुवच प्राणाब्च मुखादग्निरंजायत ।
तेन॑ देवा झंयजन्त । प्चाइसुसिमथों पुरः । यजु: झ्० ३१ ॥
तस्माद्दा एतस्मादात्मन झ्राकादा: सम्मूतः । झाकाशाद्ायु: । दायोरग्नि: । श्रस्तेराप: +
झद्धघः पथिवी । परथिस्या झोषणय: । शोषपिस्योन्दसु । श्र्न दे तः । रेतसः पुरुष: । स वा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...