आदिम रात्रि की महक | Aadim Ratri Ki Mahak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विघटन के केश ::. है४
'रामफल की बीवी ने बीच में ही वठा को माँ को काट दिया, “'झरजुन
मिसर भ्रीर गेंदा भा को वात कहती हो मौसी * तो पूछनी हूँ कि गौव में
वे दोनो करते ही क्या थे ? “विल्लल्ला” होकर इसके दरवाजे से उसके
दरवाजे पर खनी 'चुनियाते' ग्रौर दाँत निपोडकर भीख मांगते दित
कांटे थे । अ्रव घहर में जाकर 'होटिल' में भात राँधते हैं दोनो । पिछले
महीने श्ररजुन मिसर ग्राया था । भ्रव बदुझा में पनडब्वा और सुर्ती रखता
है। तोद निकल गया है।”
ग्तो तू भी रामफल को क्यो नहीं भेज देती ? तोद निकल जायगा ।”*
किसी ने कहा, “'एहू ! सभी जाकर बाहर में 'रिश्कायाडी ' सी चते हैं ।
है भगवान ! ग्रघेर है।””
जशब मिला, “क्यों ? रिक्शा सी चना बहुत बुरा काम है, क्या * पाँच
रपये रोज की कमाई यहाँ किस काम में होगी, भला ?
सभी ने देखा, कंवर्त टोली का सच्चिदा, जो पाँच पैसे का कपूर लेंने
आया था, पूछ रहा है, “बताइये ?””
किसी ने कोई जवाब नहीं दिया ।
सच्चिदा घला गया तो चुरमुनियाँ ने भोठ विदकाकर बहा, “इसके
फड़फडा रहे हैं। “ई भी किसी दित उडेगा । फुर-र 1”
१ बहुत देर से रुकी हंसी छलक पढ़ी । लोग बटुत देर तक
उसकी वात पर हृसते रहे । चुरमुनियाँ वी दादी पुकारने लगी, परी थो
चुरमुनियाँ 1”
रात में चुरमुनियाँ बडघरिया-हदेली में ही सोती है, गंगापुरवाली
दादी के साथ । दादी सुवह-शाम चाय पीती है भौर चुरमुनियाँ को घाय
की भादत पढ़ गई है। भाज रविवार है। झान रात में दी बार चाय
पियेगी, गगापुरवाली दादी ।
सेकिन झाज चाय पीने का जी नहीं होता । चुरमुनियाँ चुरचाप
झपनी कबरी में सिमट-सिकुडकर भ्रंगीठटी पर चढी केतली में पानी थी
*गनगनाहट' सुन रही हैं । दादी ने दिल्ली के सुर में पूछा, “घाज तुम
किसका 'विरह-बिजोग सता रहा है जो इस तरह “7 7
,* १
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