अर्वाचीन भारत | Arvachin Bharat

Arvachin Bharat by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद थर्वाचीन भारत *को भी हराया और कैद कर उसे सतारा भेज दिया। चन्दा साहब के परिवार ने भी तब भागकर पाडिचरी में दारण ली । रघुजी श्रौर डूमा--रपुजी की विजयो से दक्खिन दहुल उठा, लैक्नि पाडिचेरी का फ्रासीसी गवरनर मराठो के आतक में न जाया + फ़ासी सिया से पूर्व पुतगाछी, डच और अग्रेज भारत के साथ व्यापार किया करतें थे। इन सब यू रोपवालो को यहाँ वे व्यापार से बहुत फायदा था । यह देख वर फ्रास के सम्राट छुई चौदहवें के मनी कौल्वर्ट ने भी' पूर्व के साथ व्यापार बरने के लिए सन्‌ १६६७ में एक फ्रासीसी वम्पनी स्थापित बी ! १६६८ में फ्रासीसी सूरत पहुँचे और उन्होंने वहाँ अपनी पहली कोठी स्थापित की, एक साठ बाद मर्सलीपट्टमु में भी उन्होंने कोठी बना ली। सन्‌ १६७४ में फ्रासीसी गवरनर फ़ासीस मान ने बीजापुर के अधीन कर्णाटय के गवरनर से जिव्णी प्रान्त में समुदरतद के पास कुछ भूमि प्राप्त की । यहाँ पर माटिन ने एव' नया नगर वसाया जो पाडिचेरी नाम से विख्यात हवा पूरव में फ्रासीसी हुगली तब पहुँचे और चन्द्नगर (चन्दन- नगर) में भी उदाने अपनी बस्ती बायम की 1 कालीकट, कारीकेल धर माई में भी उन्होने अपनी कोठियाँ स्यापित कर ली। सन रै७०१ में भारत की सभी फ्रासीसी वस्तियाँ पादिचेरी के फ्रासीरीः गवरनर के अबीन वर दी गईं। सन्‌ १७४० में जब 'रघुजी भोसके में कर्थावव' पर आक्रमण किया उस समय डूमा पांडिचेरी का गवरनर था। डूमा ने रघुजी भासले वा जिस प्रवरता से विरोध किया उससे दक्सिन में उनकी शक्ति की घाव जम गमी । अपनी बिजयो से उत्साहित होगर रघुजी भोसले ने डूमा को वापिव' वर देने तथा चन्दा साहव के परिवार को सौंप देने के लिए भादेश भेजा । डूमा ने दोना बातें मानने से इत्दयर बर दिया । उसने रघुजी को यदद भी बहला भेजा दि फ्रासवासी सब अपने प्राण' दे देंगे, छेविए मराठी वी धमदियों और माँगों थो सामने सिर न शुवायेंगे । रघुजी डूमा वो इस दम दो देखवर पद्दले तो बहुत




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