स्वामी रामतीर्थ के लेख व उपदेश | Swami Ramatirth Ke Lekh V Upadesh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
404
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सावद
( रिसाला घ्लिफ नं० २ क
ो इस लेख से 'माँव लड़ानेवाले प्यारे ! ज़रा उस दिन को
याद कर जब कि तेरा ानंद साता के 'माँचल-तले ढका था; माँ
की चास्तीन से बैँधा था । स्वर्गीय सुदरियाँ चुलाती हैं, ब्यप्सराए
गोद सें लिया चाहती है, किंतु तुम हो आर माँ का ठुपट्टा ।
माप छिपते हो; मुखड़ा छिपाते हो । राजा साहव चुलाते हैं;
मैसिस्ट्रेट साहव याद फ़रसाते है, ठुम्द्दारी चला से; तुम तकते
तक नहीं ; वरन् सप्सरा-मुखी कपोलवालों आर वेसववान्
_ व्यक्तियों पर सचमुच पेशाब करना शाप ही का काग था । एमू०
ए० श्र एलू० एलु० डी० की तुम्हारे ्यागे कुछ दक़रीक़त ही
नहीं । कीमती कितायें ठुम्हारे ख्याल में केवल फाड़ देने
को बनाई गई थीं | क्योंजी ! कैसे सुखी थे उन दिनों ?
सच देखनेवाले वलाएँ लेते हैं, भाई न्योछावर डा चाहते हैं,
बहनें झपने ध्यापकों न्योछावर करने को तैयार हैं । पिता के
प्यारे; माता की झाँखों के तारे; छोड़ने की फ़िकर न विछोने
का जिकर । सच है--
मासूम के वहिश्त सदा हम-रकाव है ।
प680811 पेछा61]15 पाप) घड़े बस पि0],
शिशु के लिकट नित्य स्वर्ग का वास है ।
यह नहीं दिन है; जहाँ दृष्टि में न लोक है न परलोक, न जीव
है न ईश्वर: न पं” हैन'्तूण न गुण है न दोप, न ध्रूछता है न
गन्ना) संद्रियों के हाव-भाव और कटाक्ष नितान्त निस्सार,
७.
संसार की सुख-समरद्धि अत्यन्त चिरथंक ।
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