स्वामी रामतीर्थ के लेख व उपदेश | Swami Ramatirth Ke Lekh V Upadesh

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Swami Ramatirth Ke Lekh V Upadesh by सुर्जनलाल -Surjanalal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सावद ( रिसाला घ्लिफ नं० २ क ो इस लेख से 'माँव लड़ानेवाले प्यारे ! ज़रा उस दिन को याद कर जब कि तेरा ानंद साता के 'माँचल-तले ढका था; माँ की चास्तीन से बैँधा था । स्वर्गीय सुदरियाँ चुलाती हैं, ब्यप्सराए गोद सें लिया चाहती है, किंतु तुम हो आर माँ का ठुपट्टा । माप छिपते हो; मुखड़ा छिपाते हो । राजा साहव चुलाते हैं; मैसिस्ट्रेट साहव याद फ़रसाते है, ठुम्द्दारी चला से; तुम तकते तक नहीं ; वरन्‌ सप्सरा-मुखी कपोलवालों आर वेसववान्‌ _ व्यक्तियों पर सचमुच पेशाब करना शाप ही का काग था । एमू० ए० श्र एलू० एलु० डी० की तुम्हारे ्यागे कुछ दक़रीक़त ही नहीं । कीमती कितायें ठुम्हारे ख्याल में केवल फाड़ देने को बनाई गई थीं | क्योंजी ! कैसे सुखी थे उन दिनों ? सच देखनेवाले वलाएँ लेते हैं, भाई न्योछावर डा चाहते हैं, बहनें झपने ध्यापकों न्योछावर करने को तैयार हैं । पिता के प्यारे; माता की झाँखों के तारे; छोड़ने की फ़िकर न विछोने का जिकर । सच है-- मासूम के वहिश्त सदा हम-रकाव है । प680811 पेछा61]15 पाप) घड़े बस पि0], शिशु के लिकट नित्य स्वर्ग का वास है । यह नहीं दिन है; जहाँ दृष्टि में न लोक है न परलोक, न जीव है न ईश्वर: न पं” हैन'्तूण न गुण है न दोप, न ध्रूछता है न गन्ना) संद्रियों के हाव-भाव और कटाक्ष नितान्त निस्सार, ७. संसार की सुख-समरद्धि अत्यन्त चिरथंक ।




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