आधुनिक भारत में उपनिवेशवाद और राष्ट्रवाद | Adhunik Bharat Mein Upanibeshbad Aur Rashtrabad
श्रेणी : इतिहास / History, भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28.39 MB
कुल पष्ठ :
373
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4 भारत में उपनिवेशवाद और राष्ट्रवाद भी स्वयं उपनिवेशवाद की उसी प्रक्रिया का उत्पाद थी जिसने भारत में पूंजीवाद को जनम दिया था| मूल तथ्य यह है कि जिस सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक प्रक्रिया से ब्रिटेन का औद्योगिक विकास और सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति हुई थी उसी प्रक्रिया ने भारत अर्थात इस उपनिवेश में आर्थिक अविकास और सामाजिक और सांस्कृतिक पिछड़ेपन को जनम दिया और उन्हें कायम रखा। दोनों देश एक दूसरे से जुड़े हुए थे और वे लगभग दो सदियों तक एक सामान्य एकीकृत विश्वीय आर्थिक व्यवस्था में भागीदार रहे परंतु इसके जो निष्कर्ष सामने आए वे पूर्णतया असमान और परस्पर विपरीत थे । वे न तो आकस्मिक थे और न ही किसी ब्रिटिश वायसराय अथवा दूसरे व्यक्ति की शत्रुता अथवा भारतीयों या संस्थाओं की किसी विशेष मूर्खता अथवा ऐतिहासिक प्रवृत्ति का परिणाम थे। पूंजीवाद का यह असमान विकास-एक भाग का विकास और दूसरे का अविकास और व्यवस्था के विकास के लाभों का असमान वितरण-आधुनिक पूंजीवाद की एक बुनियादी विशेषता रहा है। आरंभ से ही पूंजीवाद का विकास उपनिवेशों की सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक प्रगति को अवरुद्ध करके ही हुआ है-उन देशों की प्रगति को अवरुद्ध करके जो उसके विकास में सहायक रहे हैं। इसलिए यह कोई आकस्मिक और न ही कोई असाधारण ऐतिहासिक घटना थी कि पूंजीवाद से किसी भी प्रकार से लाभान्वित हुए बिना अथवा औद्योगिक क्रांति में भागीदारी किए बिना भारत का विश्वीय-पूंजीवाद के साथ एकीकरण हो गया । उसका आधुनिकीकरण और अविकास साथ-साथ शुरू हुए। वास्तव में यदि संकीर्ण दृष्टि से न देखकर अविकास अथवा पिछड़ेपन और विकास की संभावनाओं का निर्धारण किया जाता है तो वह इसी आधार पर होना चाहिए कि राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना जिसमें बाद में बौद्धिक विकास के प्रतिमानों को भी शामिल कर लिया जाता है के मद्देनजर एकीकरण और औपनिवेशिक आधुनिकीकरण का स्तर क्या था। इसका यह भी अर्थ है कि विकास की क्षमता इस तथ्य पर निर्भर करती है कि विश्व की पूंजीवादी व्यवस्था में औपनिवेशिक स्वरूप का एकीकरण किस हद तक भंग होता है। संभवत इन्हीं दोनों कारणों से एक आदर्श अपनिवेश आजादी की पूर्वसंध्या पर औपनिवेशिक देशों में सर्वाधिक विकसित देश भारत ने शांतिपूर्ण ढंग से स्वतंत्रता प्राप्त करने की वजह से पूर्व तथा नए औद्योगिक केंद्रों से अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों को कायम रखा और उसे एक औद्योगिक क्रांति को जारी रखने में कठिनाई का सामना करना पड़ा। भारत की तुलना में एक अर्ध-औपनिवेशिक देश चीन जो कि कम विकसित था और जिसक्का विश्व की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के साथ पूर्णरूप से एकीकरण भी नहीं हुआ था औद्योगिक क्रोति जारी रखने में सफल रहा। और 1949 में वह चीन विश्व की पूंजीवादी व्यवस्था से पूर्णतया अलग हो गया और उसने समाजवादी मार्ग पर चलने
User Reviews
No Reviews | Add Yours...